स्वच्छता अभियान की प्रासंगिकता ..........!

2 अक्टूबर को ग़ांधी जयंती के दिन मोदी जी ने एक नए अभियान की शुरुआत करने का आह्वान किया है।  ये है स्वच्छ भारत अभियान।गांधी जयंती के उपलक्ष्य में होने वाली छुट्टी भी रद्द कर दी गयी है और  इस के तहत सभी कार्यालय और विद्यालय खुले रखेंगे और स्वच्छता की शपथ लेंगें। ये एक अच्छा प्रयास है और इसे सराहा जाना चाहिए। पर चर्चा का मुद्दा ये है कि क्या सफाई हमारी सिर्फ एक दिन की आवश्यकता है ? एक दिन जोश में उठ कर लग कर कुछ साफ़ कर देने से साल भर की सफाई का कोटा नहीं पूरा होता। स्वच्छता एक ऐसी आवश्यकता है जिस पर जीवन  के अनेक पहलु निर्भर करते हैं।   जैसे स्वास्थय , खूबसूरती , व्यक्तित्व का कसाव ,सुविधा , समाज में सम्बन्ध और परिवार के संस्कार। ये कुछ अलग मुद्दे है जिन्हे समझना पड़ेगा।  स्वास्थय का सफाई से क्या नाता है ये तो सभी जानते हैं।  जहाँ स्वच्छता रहती है वहाँ सेहत रहती है। गन्दगी रोगों का घर है।  इस लिए कहते है की घर ,अपने आस पास ,और अपना मोहल्ला सभी को साफ़ रखने के प्रति हर व्यक्ति को जागरूक होना चाहिए। एक महिला अपने घर की स्वच्छता  बनाये रखने के लिए दिन भर कुछ न कुछ करती रहती है जिस से हर आने  वाले को घर में में आना  अच्छा लगता है। घर को घर बनाये रखना ये एक सुघड़ महिला की जिम्मेदारी होती है। 
                                      अन्य पहलु जैसे खूबसूरती से सम्बन्ध ये है की आप का घर कैसा दिखता है ये उसके रखरखाव पर निर्भर करता है। कभी आप ने गावँ के छोटे छोटे मिट्टी के बने लीपे - पुते घर देखें है जिन्हे साफ़ रहने के कारण अच्छा कहा जा सकता है। उनके पास तो विलासता की कोई वस्तु नहीं होती फिर भी वह घर प्यारे लगते हैं। अर्थात स्वच्छता आँखों को सुन्दर लगती है। करीने से रखा गया घर का सभी सामान सुंदर तो लगता है साथ ही सुविधा भी देता है। इसी तरह आप का मोहल्ला भी यदि साफ़ और सुन्दर है तो अपने आप ही आकर्षण का केंद्र बन जाएगा।  व्यक्तित्व के कसाव से तात्पर्य है कि  यदि व्यक्ति गंदगी पसंद है तो वह फूहड़ की श्रेणी में रखा जाएगा। और फूहड़ व्यक्ति का व्यक्तिव प्रशंसा के काबिल नहीं होता। जो सफाई पसंद है वह चाहे घर में हो ये कार्यालय में उसका अपना क्षेत्र हमेशा चमकता दिखाई देगा। और धीरे धीरे उसकी पहचान बन जाएगा। ये आप के व्यक्तित्व की मजबूती है। अब सुविधा से तातपर्य ये है कि सफाई के दौरान सभी वस्तुएं सही जगह पर रखे जाने से सुविधा बढ़ती है और  उन्हें ढूढ़ने में समय नहीं गवाना पड़ता। ये आदत एक अच्छी आदत है और इसे जीवन में अपनाने से कभी भी किसी भी वस्तु के लिए परेशान नहीं होना पड़ता हैं।  समाज में सम्बन्ध यूँ प्रभावित होते है कि आप जैसे रहेंगे वैसे  ही आप  के सम्बन्ध रहेंगे। गंदे और अवस्थित घर  में कौन आना जाना पसंद करते हैं। हमारे एक मित्र जब भी हमारे घर आते पूछते की भाभीजी आप दिन में कितनी बार झाड़ू पोंछा करती है ? मेरा जवाब होता, दिन में एक बार। वह कहते की मेरी पत्नी तो दिन में चार बार सफाई करती है फिर भी हमारा घर आप के घर से गन्दा क्यों दीखता है ? मै जवाब नहीं दे पाई क्योंकि कारण घर का जरूरत से ज्यादा अव्यवस्थित रहना था। दिन में चार बार फर्श साफ़ करने के बजाये यदि उनकी पत्नी घर करीने से लगा कर रखती तो  शायद फर्श  की ओर ध्यान ही नहीं जाता। और शायद इसी वजह से हम उनके घर ज्यादा आना जाना भी नहीं चाहते थे क्योंकि रसोई की गन्दगी चाय पानी भी नहीं पीने देती थी। ये एक विचारणीय विषय है। अब परिवार के संस्कार पर गौर करें कि जैसे माँ रहेगी बच्चे भी वैसे ही बनेंगे।  उनका भविष्य बनाना  खुद माँ की जिम्मेदारी होती है। आप कैसे रहते है ये ही आप का बच्चा देख कर सीखेगा। सफाई एक जरूरत है ये माँ ही बच्चो को समझा सकती हैं।   हमारे संस्कारों में आये इस गुण  से हमारा भविष्य भी प्रभावित होता है। नए घर जा कर लड़की कैसे अपना घर सहेजती है ये उसके गुण दिखाते है। 
                  
इस लिए सफाई एक दिन की जरूरत नहीं बल्कि हमेशा की आदत बननी चाइये। यदि कोई सरकार इसे अभियान के तहत चलाती  है तो एक दिन ही कर के इतिश्री नहीं समझनी चाहिए। ये रोज हो और लगन से हो। आप जहाँ जहाँ भी आते जाते है वह जगहें आप से प्रत्यक्ष  तौर पर जुडी हैं और उनका फायदा आप तभी उठा पाएंगे जब उन्हें बदले में स्वच्छता देंगे। एक हाथ लेनी एक हाथ देनी वाला मुहावरा तो सुना ही होगा …… आप उन्हें सफाई दे वह आप को आराम देंगे इस तरह चक्र चलता रहेगा और सभी उसका लाभ ले पाएंगे। 

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