
शर्मिंदगी और मौत……… किसे ?
अभी हाल में ही एक समाँचार पढ़ने को मिला और दिल बहुत दुखी हुआ। भरतपुर जिले के एक गावं में एक 15 वर्षीया युवती का बलात्कार हुआ। जो की पास ही रहने वाले युवक की कारस्तानी थी। दुखी होने वाली बड़ी बात ये है की बलात्कार की शिकार युवती को गाव के सभी लोगों ने इतना शर्मिंदा कर दिया की उसने केरोसीन डाल कर खुद को जला लिया। जबकि वह युवक अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ कही चला गया। पीछे से उस लड़की ने इतना कुछ सहा कि उसकी सहनशक्ति जवाब दे गयी और उसने ऐसा भयंकर कदम उठा किया। इसी तरह का वाकया पंजाब के एक गाँव का भी है जिसमे युवक को कुछ भी नहीं कहा गया। जबकि युवती को लांछन लगा कर बदचलन का ख़िताब दे दिया गया। और वहाँ भी युवती ने आत्महत्या का प्रयास कर डाला। ये हो क्या रहा है ? क्यों हम culprit को शह और पीड़ित को मात देने की कोशिश में रहते है क्या पुरुष होना ही अपने आप में सही साबित हो जाने की गवाही है। जबकि ये तो सभी जानते है की बलात्कार के 90 % मामलों में पुरुष ही दोषी होता है। और फिर चलो पुरुष की सजा की बात बाद में भी करें तो उस युवती को इस के लिए क्यों लज्जित करना। क्यों वह इस घटना का दंश जीवन भर ढ़ोती रहे और आने वाला कल भी उसे ही इस के लिए दोषी मानता रहे। उसके आगे के भविष्य पर भी इस घटना का काला साया मंडराता रहे। इन दोनो घटनाओ में युवतियां जो दर्द झेल रही है उसके लिए उनका समाज दोषी है , न की वह। उस तकलीफ में सब को साथ खड़े हो कर उन्हें सहारा देना चाहिए, उस समय ये लांछन लगाना कि ये उन्ही का दोष है और उनके कर्म ने उन का भविष्य बिगाड़ दिया आदि -आदि उनके रहे सहे हौसले को तोड़ देता है और उन्हें जीवन खत्म करने के अलावा कुछ नजर नहीं आता।
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