रोमांचक जीवन के अनोखे खतरे ..........!

एक चीज जो मैं हमेशा देखती हूँ  कि भारतियों की अपेक्षा विदेशियों में जिंदगी को हैरतअंगेज कारनामों से जीने की ज्यादा ख्वाहिश रहती है और वह इस के लिए कई अनोखे नायब तरीके भी ढूंढ निकलते हैं। रोजाना ही समाचारपत्र में इस तरह का कुछ न कुछ छपा ही होता है।  जिस के जरिये उनके साहस और दिलेरी की जानकारी मिलती है। आप स्वयं देखें कि इस तस्वीर का ये युवक कहाँ से साईकिल के जरिये कूदने को तैयार है। ऐसा नहीं की वह इस के आगे के खतरे से वाकिफ नहीं होगा।  पर उसके लिए ये एक नया अनुभव होगा। जीवन को रोमांच से भर कर जीना और उस के लिए कुछ अनोखे तरीके ईजाद करना ये पाश्चात्य समाज के युवाओं का चलन बनता जा रहा है।  उनके लिए अपने शरीर से ज्यादा कीमती उनकी इच्छाएं है जो उन्हें सब से अलग बनाती है। जीवन एक लीक पर चल कर बोरिंग हो जाता है। इस लिए हमेशा होते रहने वाले कार्यों को ही कुछ अनोखे ढंग से कर के ये अपनी  अलग पहचान बनाते हैं। हम भारतियों में ये जज्बा कम देखने को मिलता है।  हम कुछ अनोखा करना तो चाहते है पर उसके लिए जीवन को खतरे में डालना आवश्यक नहीं समझते।  और यदि खतरा नजर आता भी है तो उस कार्य से पीछे हटना बेहतर समझते है। इस के कई कारण है इसे समझते हैं।                                                       पाश्चात्य संस्कृति में  बच्चे के बड़े होते ही उसे इच्छित स्वतंत्रता दे दी जाती है।  वह अपने जीवन को अपने ढंग से जीना शुरू कर देता  है। उसके अपने दोस्त अपना सर्कल बन जाता है। परिवार की जरूरत उसे रहती है पर वह या तो रहने के लिए या खर्च मांगने के लिए। यहाँ तक की अपने खर्च पूरे  करने के लिए भी उसे कुछ अतिरिक्त कार्य करना आवश्यक हो जाता है। इस तरह उसका परिवार से संपर्क कम हो कर उसके बराबर के लोगो के बीच ज्यादा हो जाता है। जब कि भारतीय सभ्यता में बच्चा चाहे कितना भी बड़ा हो जाए परिवार से उसका संबंध नहीं टूटता। व्यक्तिगत खर्च से लेकर वह क्या पढेगा , कहाँ पढेगा  और कब तक पढ़ेगा ये सब परिवार ही निश्चित करता है। उसका समय पर आना, समय पर जाना ये सब परिवार की ही मर्जी से होता हैं। अतः जो बच्चा या युवा परिवार से इस कदर जुड़ा हो उसे इस तरह के रोमांचक कारनामे करने की इजाजत परिवार नहीं दे सकता। भारतीय परिवार में तकलीफ सांझी होती है। इस लिए परिवार का कोई भी सदस्य कुछ खतरनाक करें ये नहीं माना जाएगा। शायद यही कारण है कि भारतीय इस मामले में विदेशियों से थोड़ा पीछे है पर ये पिछड़ापन मेरे विचार से एक गर्व का विषय हैं। क्योंकि हम परिवार से जुड़े रहने के कारण कही न कही सुरक्षित रहते हैं। हमारा परिवार या समाज हमारे कार्यों का आंकलन करता रहता है जिस से हम कुछ नया जो की गलत हो सकता है करने से डरते हैं।कोई जरूरी नहीं की रोमांच ऐसा हो जिस में जीवन के ऊपर संकट आये और फिर असफल होने पर जीवन भर उस दर्द और कमी के साथ जीना पड़े। 

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