महत्वाकांक्षा के दुरुपयोग का नतीजा……!

महत्वाकांक्षा एक अच्छी भावना है और ये हमेशा ही व्यक्ति को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इसी के सहारे व्यक्ति बड़ी से बड़ी बाधा पार कर के अपनी मंजिल तक पहुँचने का हौंसला बनाये रखता है। परन्तु ये महत्वाकांक्षा यदि सीमा से बाहर जा कर इच्छाएँ पूरी करने के लिए दबाव बनाती है तो नतीजतन व्यक्ति गलत राह पर चला जाता है। और फिर उसे ये लत लग जाती है कि कुछ अनुचित ही क्यों न करना पड़े पर अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए कुछ भी कर गुजरना है। ऐसे कई उदाहरण सामने मिल जाएंगे पर ज्वलंत उदाहरण जयललिता की खास दोस्त शशिकला है। जिस ने अपने स्वार्थ के लिए जयललिता के पूरे  कैरियर की बलि चढ़ा दी। अब ये तो इंसान के समझ की बात है कि वह जिस रास्ते पर चल रहा है उसका आगा पीछा खुद तय करे। आखिर राजनीति की इतनी माहिर खिलाडी जयललिता कैसे न समझ पाईं कि रोज उसके आगे पीछे घूमने की चाह रखने वाली शशिकला ने अपनी महत्वाकांक्षाएं कितनी ऊंचीं कर रखी है कि वह उसके भी आगे निकलने के सपने देखती रहती थी। उसने अपने भतीजे सुधाकरन को भी जयललिता के दत्तक पुत्र के रूप में स्थापित करवा दिया। जिस से संपत्ति का हक़ आसानी से पाया जा सके। यहाँ तक माना जाता है कि अपने पति नटराजन को मुख्यमंत्री बनाने के लिए शशिकला ने जयललिता को धीमा विष भी देना प्रारम्भ कर दिया था जो कि बाद में उनके बीमार होने पर पता चला। अथाह संपत्ति का भंडार एकत्र करना तभी मुमकिन हो पाया जब जयललिता को काबू में कर के उसका पूरा साम्राज्य अपने हाथ में ले लिया। किसी का साथ सिर्फ इस लिए पकड़े रखना कि वह आप के लिए फायदे का सौदा है ये तो मित्रता नहीं हुई एक प्रकार का सौदा हुआ । ऊँचा उठने की चाह में अपने साथ के व्यक्ति को पैरों तले कुचल देना स्वार्थसिद्धि कहलाती है। और यही विकृत महत्वाकांक्षा की परिभाषा है। 
                         महिलाओं में इस तरह की महत्वाकांक्षा का एक अन्य उदाहरण भवंरी देवी भी है। जिस ने अपने कद को ऊँचा करने के लिए उस हर तरीके को आजमाया , जो नारी के लिए एक धब्बे से कम नहीं था। नारी की गरिमा को बनाये रखते  हुए अगर कुछ हांसिल किया जाए तो उसे इनाम कहा जा सकता है। पर यदि अपनी गरिमा की कीमत पर कुछ पाया जाये तो उसे कलंक के अलावा कुछ नहीं समझा जा सकता। भवंरी देवी ने एक बार स्वयं का दुरुपयोग होने पर इसे दूसरों के लिए हथियार के रूप में प्रयोग किया। सी. डी के दम पर उसने  बहुतों को नचाने का प्रयास किया। और इसी की बदौलत  पर उसने बहुत कुछ हांसिल किया और आगे भी करती रहना चाहा। जिस का खामियाजा उसे अपनी जान दे कर चुकाना पड़ा।  पर जयललिता के केस में तकलीफ उसे ही ज्यादा हुई। क्योंकि बनी बनाई  राजनीती की बिसात पलट जाना पूरे राजनितिक कैरियर को तबाह कर देने जैसी बात थी। अब प्रश्न ये उठता है कि क्या ये सही है की कोई महिला महत्वाकांक्षा की ऊंचाइयां पाने के लिए अपनी मर्यादाओं कि सीमारेखा को भी नजरअंदाज कर दे। महिला के नाम से ही गरिमा का अहसास होना उसके लिए गर्व की बात होती है। और इन दोनों उदाहरणों में महिला ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए वह सारी बाधाएं पार की जिस में एक नारी बंध कर गर्व महसूस कर सकती हैं। पर अब समय बदल गया है अब महिला किसी भी तरह खुद को साबित करने के लिए कुछ भी , कैसे भी और कभी भी  कर गुजरना चाहती है।  ये गलत है और इसे हमें ही बदलना होगा। ताकि गरिमा के साथ सम्मान बना रहे। 

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