रिश्ते की मजबूत डोर में जुझता व्यक्तित्व का सच ! 

पति और पत्नी गाड़ी के दो पहियों के सामान है। ये आप ने कई बार सुना होगा या अपने निजी जीवन में महसूस भी किया होगा। पर क्या आप ने ये सोचा है की पति पत्नी रेल की पटरिओं के भी सामान है जो साथ साथ चलते हुए भी अलग - अलग हैं। अपने अस्तित्व से , अपनी पहचान से , अपनी रुचिओं से , अपने शक्ल -सूरत से , अपने कार्यों से ,अपनी शारीरिक बनावट से और भी बहुत कुछ जो उन्हें भिन्न बनाता हैं।  ये समाज का एक सुखद नियम है जिस के सहारे आज सृष्टि चलायमान है। दो अलग अलग परिवारों के दो लोग कैसे एक साथ रहते हुए एक दूसरे के सुख दुःख के साथी बन जाते है। एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करते हुए इतने करीब आ जाते है कि दुःख और सुख एक साथ महसूस करने लगते हैं। साझी जिंदगी जीने का एक उत्तम उदाहरण पति और पत्नी का जीवन है। पर क्या किसी ने ये सोचने का प्रयास किया कि इस पर्याय रुपी जिंदगी जीने के लिए जो समझौते किया जाते हैं उसमे स्वयं के व्यक्तित्व का कितना फायदा और नुकसान छुपा है। 
                    एक लड़का या लड़की युवावस्था में अपने लिए अनेकों सपने देखते हैं।  और आगे चल कर उसे पूरा करने का प्रयास भी करना चाहते हैं। अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने की चाहत हर किसी को होती है। आज का समय तो काफी बदल गया है वर्ना पहले माता पिता जहाँ भी, जैसे भी विवाह कर देते स्वीकार कर लिया जाता था। और जो एक महत्वपूर्ण बात सत्य है वह ये कि प्यार जैसी भावना पहले विवाह के बाद महसूस की जाती थी। साथ रहते रहते एक दूसरे की अच्छाइयों को जानते समझते उनकी आदतों से प्यार होने लगता और वह प्यार जीवन भर के साथ में बदल जाता। अब आज की परिस्थिति में सब कुछ नया तो है पर बहुत अच्छा नहीं हैं। क्योंकि जिस साथ का वादा किया जाता है उसे ज्यादा शिद्दत से निभाने के लिए जोर नही दिया जाता।  कारण अपने व्यक्तित्व की पहचान आड़े आती हैं। हर कोई अपनी एक अलग पहचान के साथ जीना चाहता है।  और ये कत्तई नहीं चाहता कि विवाह के उपरांत उसे उसके परिवार , पति या पत्नी , या किसी एक निश्चित पहचान के साथ जाना जाए। यह धारणा परिवारों में कुछ समय बाद विघटन की स्थिति पैदा करने लगती है। लेकिन इस विचार का प्रसार ही है जो आज महिलाऐं आगे निकल पाई हैं। पहले महिलाऐं सिर्फ चौके चूल्हे और बच्चो के लालन पालन  पोषण तक ही सिमित रहती थीं। अब इसे साझा बनाने में समय के विस्तार का ही हाथ हैं। अच्छा भी है कि आज पति या पुरुष भी बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझता हैं और यदि कामकाजी पत्नी है तो बराबर का हाथ बंटाता है।  इस सब में पति और पत्नी का स्वयं के प्रति नजरिये में जो बदलाव आता है उसे ही दुरुस्त कर के  विघटन या व्यक्तित्व की हानि को रोक जा सकता है। बहुत सी बातें जो अच्छी नहीं लगती सिर्फ इसलिए करना क्योंकि वह आप की परिस्थितयां की मांग है, यह स्थिति परेशान करती है। ऐसे में उसे पहले अपनी खुद की पसंद बन जाने का मौका दें।  ये एक अच्छी कोशिश है और इस से दो अलग अलग व्यक्ति एक साथ बेहतर तालमेल बिठा सकते हैं। अपने व्यक्तित्व की खासियत के साथ परिवार की कमान संभाले रखना ही  जीवन है जिस में दोनों को अपनी अपनी काबिलियत से up and down हो कर व्यवस्था बनाये रखनी पड़ती है। परिवार ही जीवन है और जीवन समझौते का नाम है ये मूल मंत्र जिस दिन समझ आ गया उस दिन परिवार को बचाने के लिए अदालतों को नहीं आना पड़ेगा। …………  

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