
माँ..........सृजनकर्ता !
अगर मैं आप से ये पूछूं की कोई एक इंसान ऐसा बताये जो सही मायनों में आप की ख़ुशी से वास्ता रखता हो और आप को फलता फूलता देख कर गर्व महसूस करता हो। तो आप किस का नाम लेंगे। ……… यकीनन अपनी माँ का ! इस पूरे संसार में एक वही अकेली है जो आप की तरक्की को अपनी ख़ुशी के रूप में स्वीकार करती है। माँ शब्द में ही इतना मीठास है की उसे बोलते ही उसकी ममता का अहसास मन में उठने लगता है। कोख में संतान के पड़ने से लेकर उसके पूरे जीवनकाल में अगर कोई है जो उसके अच्छे बुरे को दिल से लगता है तो वह माँ ही हैं। माँ ….... एक ऐसा रिश्ता जो सिर्फ एक रिश्ते की तरह नहीं बल्कि जीवन की तरह जिया जाता है। जैसे आपके जीवन का हर पल आप को एक बेहतर करने प्रेरित करता है। उसी तरह एक माँ भी अपने बच्चे की बढ़त के लिए हर प्रकार के सहयोग के लिए तैयार रहती है । अब ये आंकलन करतें हैं कि माँ ऐसी क्यूँ है ? और क्यों उसका मन अपनी संतान के लिए तड़पता रहता है ?
ईश्वर ने एक स्त्री को जो सबसे बड़ी नेमत बक्शी है वह है माँ बनने का सुख। ये अनुभूति पुरुष कभी भी नहीं पा सकता। पहला वह दिन जिस दिन डॉक्टर उसे ये सूचना देती है की वह माँ बनने वाली है उसी दिन से वह उस बच्चे का जीवन जीने लगती है। बच्चे के हिसाब से खाना, पीना, सोना उठना , बैठंना ,पूरा ऐहतियात बरतना ताकि बच्चे को कोई नुकसान ना पहुंचे ये ही जींवन जीने लगती है माँ। गर्भावस्था के पूरे नौ माह उसके लिए कठिन परीक्षा से कम नहीं होते फिर भी वह इस में भरसक उत्तीर्ण होने का प्रयास करती हैं। नौ माह अपनी संतान को अपने एक अंश , नाल के जरिये अपने हिस्से से खानपान देते रहना और साथ ही साथ ये भी देखते रहना की वह जो भी अपनी संतान को दे रही है वह उसे लग रहा है या नही ये सिर्फ एक माँ ही कर सकती है। कुछ माह गुजरने के बाद जब संतान का हिलना डुलना प्रारम्भ होता है तब जो उसके मन की स्थिति होती है उसे बयां करना कठिन है। क्योंकि तब वह अपूर्व सुख में डूबी रहती है। एक जीव का उदर में हिलना और लातें मारना उसके लिए स्वर्ग मिलने से भी बड़ा सुख बन जाता है। अपनी संतान से बातें करना और उसके अहसास को महसूस करना माँ के चरित्र को और मजबूत करता है।जन्म के समय भी अनेकों तकलीफें पा कर वह संतान को जीवन देने का प्रयास करती है और फिर ताउम्र उस जीवन की रक्षा भी करती हैं।पर इन सब से पर जो विचारणीय विषय है की ये सब कुछ सभी जानते है पर ऐसा क्या की यूवा होने के बाद यही सब भूल जाना पड़ता है और माँ से दूर एक नया जीवन शुरू करना पड़ता है।एक पीढ़ी का अंतर तो माँ और संतान में होता ही है पर वह अंतर खाई जैसा बन कर दोनों में दूरिया बढ़ा दे यह गलत है। माँ को अहमियत को समझने के लिए एक बार सिर्फ अपने जन्म को याद कीजिये। ये सोचना छोड़ दीजिये की मेरी माँ ने ऐसा क्या अनोखा कार्य किया ये तो सभी माए करती हैं। क्योंकि ये एक एहसान ही है कि आप की माँ ने कोख में जगह दे कर आप को इस दुनिया को देखने का अवसर दिया। वरना जीवन की एक हजार करोड़ योनिओं में जन्म लेकर कही आप कीड़े मकोड़े का जीवन जी रहे होते। इस लिए अपने माँ के अहसान को आशीर्वाद के रूप में समझे और सम्मान की हक़दार को उसकी सही जगह दें। ..........
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