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आज क्यों लगता है इस माहौल में जीना मुश्किल होता जा रहा है। रोज कुछ न कुछ ऐसा पढने या देखने को मिल ही जाता है जो जिंदगी के तमाम फलसफों की धज्जियाँ उड़ा कर रख देता है। हाल के ही समाचार पत्र में पढ़ा कि एक सात वर्षीय बालक को अपहरण कर के नहर में डुबों कर मार डाला गया। क्योंकि उस के पिता के पास 2 करोड़ रूपये नहीं थे कि वह फिरौती की रकम चुका सकें। और ऐसी ही एक दूसरी घटना में एक वर्षीया बालक को पार्क में से खेलते हुए अगवा कर लिया गया और उसके लिए भी फिरौती से समबन्धित कॉल आ रहें है। आखिर ये सब क्या और क्यों हो रहा है ? हम इतने असंवेदनशील क्यों हो गया हैं की हमारा धर्म, कर्म और नियत सिर्फ पैसा ही हो कर रह गया है। क्या छोटे बच्चो पर भी प्यार आने और तरस खाने की भावना मर सी गयी है। हमारे सामने कोई छोटा अनजान बच्चा जब भी खेलते हुए गिर जाता है तब हम जा कर उसे उठाते है और ये पूछतें हैं कि बेटा चोट तो नहीं लगी ? उसके कपडे झाड़ कर उसे चींटी मर गयी कह कर सांत्वना देते हैं। और खेलते रहने के लिए उसका हौसला बढ़ाते हैं। अब वह भावना अगवा कर मार देने में कैसे बदल गयी। जीवन के सारे values ख़त्म से हो गए हैं। और अब हम भौतिकता के इतने गुलाम हो गए हैं कि हम अपनी जरूरतों के लिए किसी को मरने मारने से भी नहीं चूक रहें। एक बार मन से सोचिये की उस मासूम को क्या पता होगा की उसकी किस गलती की सजा उसे दी जा रही हैं। क्यों उसे उसकी माँ से अलग किया गया। मेरी नजर में बच्चे को अगवा करना एक जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है। और इस के लिए एक त्वरित और सतर्क कानून प्रक्रिया की जरूरत है जिस से समय रहते बच्चे का पता लगाया सके। देर होने पर बच्चे का मृत शरीर ही हाथ लगता है जो की एक माता पिता के लिए कभी भी न भरने वाला घाव बन कर रह जाता है।
एक तरफ तो अपने कार्यक्रम सत्यमेव जयते में आमिर खान खेल को प्रोत्साहन देने की बात कहते हुए ये मांग कर रहें है की अधिक से अधिक मैदान में खेले जाने वाले खेलों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। मैदान के खेलों से उनका शरीर स्वस्थ्य और निर्णय लेने की क्षमता का विकास होगा। जबकि आज कल के बच्चे सिर्फ टी. वी या कम्प्यूटर से ही चिपके रहते हैं। पर दूसरी तरफ ये देखें की इस तरह के माहौल में माता पिता अपने बच्चे को किसी मैंदान में खेलने कैसे भेजेंगे ? जब कि उनकी सुरक्षा का प्रश्न सामने खड़ा हो। अब माता पिता पुरे समय तो बच्चे पर निगाह रखने के लिए पार्क में या मैदान में बैठे नहीं रह सकते। ऐसे में उनके लिए घर में माता पिता की आँख के सामने रहना अच्छा है या कि पार्क या मैदान में खेलना। ये दो अलग अलग मुद्दे है जो कि दोनों हो महत्वपूर्ण है। छोटे बच्चे अपनी मित्र मण्डली के साथ बाहर ही खेलना पसंद करते है। ऐसे में उनके मन में कितनी सीख भरी जा सकती है ? और फिर बच्चे तो बच्चे हैं। लाख सिखा देने के बाद भी यदि वह किसी के आकर्षण में इधर उधर चले गए तो उस अगवा बच्चे सा हाल होगा। ये गंभीर और घृणित मुद्दा है और इसे इस नजरिये से देखें की हम पर बीते तो कैसा लगेगा। जागिये और सतर्क रहिये चाहे वह आप का बच्चा न भी हो तो भी उसे एक मासूम समझ कर उसकी सुरक्षा के प्रति जागरूरक रहें। हर माता पिता का ये फ़र्ज़ है की यदि वह वहाँ उपस्थित है तो हर उस बच्चे की जिम्मेदारी उनकी है जो उनके सामने उपस्थित हैं। जिस से अराजक तत्व की दखलंदाजी रुकेगी।
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