जीतने का जज्बा परिस्थितियों का 
मोहताज नहीं!


सिर्फ एक जज्बा काफी है जीत के लिए ……! ये सही है और इसे मैरीकॉम ने एशियाड  में सिद्ध कर दिया। एक विवाहित स्त्री और ऊपर से तीन बच्चों माँ ने ये कैसे कर लिया।  ये एक आश्चर्य का विषय है।  नहीं तो हम भारतीय स्त्रियों के पास अपनी असफलताओं का एक ही कारण नजर आता है कि पहला तो शादी के बाद समय नहीं मिलता या बच्चे पैदा होने के बाद शरीर ख़राब हो गया। कुछ न कर पाने के लिए कुछ तो वजह ढुढ़नी ही है सो बता दी गयी। लेकिन मरीकॉम एक अपवाद है। उसने न सिर्फ परिवार को संभाला बल्कि एक अच्छी  बेटी ,एक अच्छी पत्नी एक अच्छी बहु , एक अच्छी माँ और सबसे बड़ा एक अच्छी इंसान बन कर दिखाया।  ये एक हिम्मत की बात है और हम महिलाओं के लिए इस से बड़ी प्रेरणा कोई हो ही नहीं सकती।
                              मैरीकॉम ने तत्कालीन चल रहे एशियाड में सोना जीत लिया।  पांच बार की विश्व चैम्पियन और ओलम्पिक में कांस्य विजेता मैरीकॉम ने इस गोल्ड मेडल को जीत की भूख से जोड़ा। उनके अनुसार यदि व्यक्ति में कुछ कर गुजरने की चाह  होगी तो उस के लिए कोई भी बाधा नहीं मायने रखती। परिस्थितियों से लड़ कर आगे बढ़ना और हार न मानते हुए जीत हांसिल करना एक बड़ी उपलब्धि है।मैरीकॉम ने मणिपुर के एक गाव में जन्म लिया। खेतों में काम करते हुए उन्होंने  बचपन से ही निर्धनता में जीवन काटा। अपने छोटे भाई बहनों  का पालन पोषण करते हुए वह बड़ी हुई। उस समय उनका कोई सपना नहीं था। पर 1998 के गोल्ड मेडलिस्ट धिनको सिंह से अभिभूत हो कर उन्होंने इम्फाल जाकर बाकायदा  ट्रैनिंग लेने की सोची। और अपने गुरु को कभी निराश न करते हुए उन्होंने अर्जुन अवार्ड ,पदमश्री अवार्ड ,राजीव ग़ांधी खेल रत्न अवार्ड  पाया  और इंटरनेशनल बॉक्सिंग चैम्पियनशिप एसोसिएशन की तरफ से  पांच बार विजयी रहीं। मात्र 18 वर्ष कि उम्र से ही बॉक्सिंग के प्रति अपने रुझान को इस कदर जीने वाली मैरी कॉम ने ये सिद्ध कर दिया की उम्र और  परिस्थितयाँ जूनून के आड़े कभी नहीं आ सकती। 
         हम औरतों की सामान्य  समस्या क्या है ? कभी ये सोचा है। वह ये कि हम अपने बारे में बहुत कम सोचते हैं। ख़ास कर विवाह के बाद तो हमारी दुनिया ही पति बच्चे घर परिवार हो जाते हैं और हम कही पीछे रह जातें है। ऐसा नहीं की हमारी कुछ hobbies न हों या हम कुछ नया न करना चाहते हों पर उसके लिए समय निकलना या लीक से कुछ अलग हट कर करना संभव नहीं हो पाता।  इस का कारण परिवार नहीं हमारी खुद की खुद के प्रति अवहेलना है। क्यों परिवार के बंधन हमें हमारी खुशियों से ज्यादा बड़े लगते हैं अगर यही मैरीकॉम ने सोच होता तो वह आज हमारे बीच में मैरीकॉम बन कर नहीं खड़ी होती। बहुत सी ऐसी वजहें होती है जो समय की दीवार बन कर आड़े आती है पर उस से बड़ी वजह होती है अपनी मंजिल। जिस पर हमारा नाम लिखा होता है बस उसे पाने के लिए थोड़े त्याग की जरूरत होती है। विवाह एक आवश्यकता है पर वह बाधा के रूप में जीवन में न प्रवेश करें ये हम ही निश्चित करते हैं। बच्चे पैदा करना एक औरत का प्राकृतिक हक़ है और इस के चलते अपने शरीर से विश्वास उठ जाना सही नहीं है। आखिर हमारी फिल्म उद्योग में भी तो ऐसे अपवाद मौजूद है जिन्होंने बच्चे पैदा होने के बाद भी अपने व्यक्तित्व का आकर्षण कम नहीं होने दिया। अतः ये जरुरी नहीं की विवाह जीवन को एक नयी दिशा में ले जाए बल्कि ये एक सीधी आगे चलने वाला कदम होना चाहिए जिसमें आप के साथ एक नया हमसफ़र जुड़ गया है जो जीवन भर आप का साथ देगा।   

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