पृथ्वी का विकल्प नहीं,जीवन सिर्फ यहीं ........!
पिछले कई दशकों से दुनिया के सारे वैज्ञानिक इस प्रयास में कि पृथ्वी के अलावा कोई तो ऐसे ग्रह की खोज करें जिस में जीवन हो। जिस से वहाँ भी बसने के विकल्प की तलाश की जाए। अभी हाल ही में वाशिंगटन के कुछ शोधकर्ताओं ने पृथ्वी से 729 ख़रब मील दूर स्थित एक ग्रह की खोज की है और जीवन तलाशने पर वहाँ पानी की कुछ बुँदे भी पायी गयी है। ये ग्रह पृथ्वी से चार गुना बड़ा है। परन्तु जो बात इसे पृथ्वी की तरह रहने योग्य बनाने से रोकती है वह है वहाँ पाई गयी गर्म गैसें। ये एक गर्म गैस के गोले के सामान है और हो सकता है कि जो पानी की बुँदे मिली हैं वह भी इन्ही गैसों के वाष्प हों। इस लिए इस खोज का सार्थक परिणाम मिलना संभव नहीं हो पाया। पहले भी इस तरह की एक और खोज के जरिये एक छोटा ग्रह HAT,P -11B खोजा गया। जिसमे संभावनाएं तलाशी जा सकती थी। पर वह भी 1000 डिग्री सेल्सियस तापमान के कारण रहने योग्य नहीं समझा गया। एक अकेली पृथ्वी ही है जिस में वह सब वस्तुएं मौजूद हैं जो एक जीवन के लिए जरूर चाहिए। इस चर्चा का तात्पर्य ये है कि पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जिस में जीवन व्याप्त है और हमे खुद को जीवित रखने के लिए इसे बनाये रखने की कोशिश करते रहना चाहिए।
अब इस उदाहरण से ये तो समझ आ ही गया होगा कि हमें जीवन सिर्फ पृथ्वी पर ही मिल सकता है। लाख कोशिशों के बाद भी कोई ऐसा दूसरा स्थान या ग्रह नहीं मिल सका जो जीवन दे सके। जब ये समझ आ गया तब उसकी कीमत भी समझ आ गयी होगी।और जिस वस्तु की ज्यादा कीमत का अंदाजा हमें लग जाता है हम उसे संभाल कर रखने का प्रयास करते हैं। लेकिन क्या हम ऐसा कर रहें हैं ? एक बार अपने दिल से पुछियें। नहीं बिलकुल नहीं। हम उसकी ही सम्पदा को इस तरह ख़त्म करने पर तुले है जैसे हम ही आखिरी मानव श्रंखला के हिस्से हों। मानव को जीवन यही जीना है और उसके लिए ये जरूरी है कि वह मौजूद तमाम प्राकृतिक सम्पदाओं का रक्षण करें। आगे की पीढियां प्रकृति को भरपूर देख पाएं और उसका सुख उठायें इस के लिए हमें आज प्रयास करना पड़ेगा। हमारे जिंदगी जीने के तरीके ने प्रकृति को बहुत क्षति पहुंचाई है। आज पानी दिन पर दिन कम होता जा रहा है, हवा प्रदूषित होती जा रही है, जंगल कम हो रहें हैं , वनों में रहने वाले जंगली जानवर ख़त्म हो रहें है ,कई प्रजातियां तो लुप्त ही हो चुकीं हैं। ऐसे में हम पृथ्वी को बचाने का कैसे सोच सकते हैं ? आज जो भी स्थिति है उसके जिम्मेदार हम ही है। ये हमारी लापरवाहियों का ही नतीजा हैं। और ये हम समझ ही नहीं पा रहें। जीने के लिए जरूरी हवा ,पानी जमीन सभी तो हमें ये पृथ्वी दे रहीं है फिर जो हमें सब कुछ दे रहां हो उसे कुछ वापस करना भी तो बनता है।
आज मोदी जी ने जो सफाई अभियान का अलख जगाया है दिल से सोचें तो वह भी धरती को गंदगी से बचाने का एक प्रयास है। क्योंकि हमारी फैलाई गन्दगी का बोझ ये पृथ्वी ही ढोती है। इस तरह के प्रयासों में कई मुद्दे हैं जिन्हे हमें दिल से स्वीकार कर अपनाना पड़ेगा। और ये नही की पहल कौन करें हर कोई आगे बढ़ कर इसे रोजमर्रा की जरूरत समझ कर अपना ले। वैसे भी मानव भेड़ चाल में विश्वास रखने वाला प्राणी है हो सकता है कि एक को देख कर और कई आगे आ जाये और ये एक सिलसिले के रूप में चल पड़े। अच्छाई का विस्तार कैसे भी हो करना चाहिए। ब्रम्हाण्ड के अकेले वरदान के रूप में पृथ्वी हमें जीवन दे रही है। और उसका रक्षण करना हमारा फर्ज है
पिछले कई दशकों से दुनिया के सारे वैज्ञानिक इस प्रयास में कि पृथ्वी के अलावा कोई तो ऐसे ग्रह की खोज करें जिस में जीवन हो। जिस से वहाँ भी बसने के विकल्प की तलाश की जाए। अभी हाल ही में वाशिंगटन के कुछ शोधकर्ताओं ने पृथ्वी से 729 ख़रब मील दूर स्थित एक ग्रह की खोज की है और जीवन तलाशने पर वहाँ पानी की कुछ बुँदे भी पायी गयी है। ये ग्रह पृथ्वी से चार गुना बड़ा है। परन्तु जो बात इसे पृथ्वी की तरह रहने योग्य बनाने से रोकती है वह है वहाँ पाई गयी गर्म गैसें। ये एक गर्म गैस के गोले के सामान है और हो सकता है कि जो पानी की बुँदे मिली हैं वह भी इन्ही गैसों के वाष्प हों। इस लिए इस खोज का सार्थक परिणाम मिलना संभव नहीं हो पाया। पहले भी इस तरह की एक और खोज के जरिये एक छोटा ग्रह HAT,P -11B खोजा गया। जिसमे संभावनाएं तलाशी जा सकती थी। पर वह भी 1000 डिग्री सेल्सियस तापमान के कारण रहने योग्य नहीं समझा गया। एक अकेली पृथ्वी ही है जिस में वह सब वस्तुएं मौजूद हैं जो एक जीवन के लिए जरूर चाहिए। इस चर्चा का तात्पर्य ये है कि पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जिस में जीवन व्याप्त है और हमे खुद को जीवित रखने के लिए इसे बनाये रखने की कोशिश करते रहना चाहिए।
अब इस उदाहरण से ये तो समझ आ ही गया होगा कि हमें जीवन सिर्फ पृथ्वी पर ही मिल सकता है। लाख कोशिशों के बाद भी कोई ऐसा दूसरा स्थान या ग्रह नहीं मिल सका जो जीवन दे सके। जब ये समझ आ गया तब उसकी कीमत भी समझ आ गयी होगी।और जिस वस्तु की ज्यादा कीमत का अंदाजा हमें लग जाता है हम उसे संभाल कर रखने का प्रयास करते हैं। लेकिन क्या हम ऐसा कर रहें हैं ? एक बार अपने दिल से पुछियें। नहीं बिलकुल नहीं। हम उसकी ही सम्पदा को इस तरह ख़त्म करने पर तुले है जैसे हम ही आखिरी मानव श्रंखला के हिस्से हों। मानव को जीवन यही जीना है और उसके लिए ये जरूरी है कि वह मौजूद तमाम प्राकृतिक सम्पदाओं का रक्षण करें। आगे की पीढियां प्रकृति को भरपूर देख पाएं और उसका सुख उठायें इस के लिए हमें आज प्रयास करना पड़ेगा। हमारे जिंदगी जीने के तरीके ने प्रकृति को बहुत क्षति पहुंचाई है। आज पानी दिन पर दिन कम होता जा रहा है, हवा प्रदूषित होती जा रही है, जंगल कम हो रहें हैं , वनों में रहने वाले जंगली जानवर ख़त्म हो रहें है ,कई प्रजातियां तो लुप्त ही हो चुकीं हैं। ऐसे में हम पृथ्वी को बचाने का कैसे सोच सकते हैं ? आज जो भी स्थिति है उसके जिम्मेदार हम ही है। ये हमारी लापरवाहियों का ही नतीजा हैं। और ये हम समझ ही नहीं पा रहें। जीने के लिए जरूरी हवा ,पानी जमीन सभी तो हमें ये पृथ्वी दे रहीं है फिर जो हमें सब कुछ दे रहां हो उसे कुछ वापस करना भी तो बनता है।
आज मोदी जी ने जो सफाई अभियान का अलख जगाया है दिल से सोचें तो वह भी धरती को गंदगी से बचाने का एक प्रयास है। क्योंकि हमारी फैलाई गन्दगी का बोझ ये पृथ्वी ही ढोती है। इस तरह के प्रयासों में कई मुद्दे हैं जिन्हे हमें दिल से स्वीकार कर अपनाना पड़ेगा। और ये नही की पहल कौन करें हर कोई आगे बढ़ कर इसे रोजमर्रा की जरूरत समझ कर अपना ले। वैसे भी मानव भेड़ चाल में विश्वास रखने वाला प्राणी है हो सकता है कि एक को देख कर और कई आगे आ जाये और ये एक सिलसिले के रूप में चल पड़े। अच्छाई का विस्तार कैसे भी हो करना चाहिए। ब्रम्हाण्ड के अकेले वरदान के रूप में पृथ्वी हमें जीवन दे रही है। और उसका रक्षण करना हमारा फर्ज है
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