स्व आँकलन तुलनात्मक क्यों ..भाग 2 (देश के संदर्भ में )
स्व आंकलन ,तुलनात्मक क्यों ? ?
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भाग -2 (देश के संदर्भ में )
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लेख के पिछले अंक में इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास किया कि आंकलन तुलनात्मक नहीं होना चाहिए। वह चाहे खुद से बड़े से हो या खुद से छोटे से । यह चरित्र का सही चित्रण प्रस्तुत नहीं कर पाता है ।
अब इसी परिपेक्ष्य में देश की व्यवस्था और कार्य प्रणाली को देखेंगे। आज हिंदुस्तान में जो परिदृश्य दिखाई दे रहा है उसकी जब भी विवेचना करना चाहो । तो उस विवेचना की चर्चा को तुलनात्मक आधार पर श्रेष्ठ साबित कर दिया जाता है। ये तुलनात्मक आंकलन खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए ही होता है । चाहे वह बड़े से हो या छोटे से। और फ़िर जब खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित कर ही दिया जाता है। तो फिर सवाल करने का या उंगली उठाने का मौका खत्म हो जाता है।
कहते है कि अच्छा बनने के लिए अपने आलोचकों को सबसे पहले सुनना चाहिए। क्योंकि चाटुकार तो वही कहेगा जो आपके कान सुनना चाहते हैं। पर आलोचक वह परिदृश्य दिखायेगा जो आपकी आंखों से अनदेखा रह गया था।
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भाग -2 (देश के संदर्भ में )
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लेख के पिछले अंक में इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास किया कि आंकलन तुलनात्मक नहीं होना चाहिए। वह चाहे खुद से बड़े से हो या खुद से छोटे से । यह चरित्र का सही चित्रण प्रस्तुत नहीं कर पाता है ।
अब इसी परिपेक्ष्य में देश की व्यवस्था और कार्य प्रणाली को देखेंगे। आज हिंदुस्तान में जो परिदृश्य दिखाई दे रहा है उसकी जब भी विवेचना करना चाहो । तो उस विवेचना की चर्चा को तुलनात्मक आधार पर श्रेष्ठ साबित कर दिया जाता है। ये तुलनात्मक आंकलन खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए ही होता है । चाहे वह बड़े से हो या छोटे से। और फ़िर जब खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित कर ही दिया जाता है। तो फिर सवाल करने का या उंगली उठाने का मौका खत्म हो जाता है।
कहते है कि अच्छा बनने के लिए अपने आलोचकों को सबसे पहले सुनना चाहिए। क्योंकि चाटुकार तो वही कहेगा जो आपके कान सुनना चाहते हैं। पर आलोचक वह परिदृश्य दिखायेगा जो आपकी आंखों से अनदेखा रह गया था।
हमारे देश के दोनों तरफ ऐसे बीसियों उदाहरण हैं जिन्हें किसी भी वाकये के लिए सामने रखा जा सकता है। लेकिन समस्या ये है कि ये उदाहरण तब चुने जाते हैं जब वह "हमें उनसे बेहतर और उनको कमतर" दिखाते हों । वह तब प्रकाश में नहीं लाये जाते जब वह हमसे बेहतर करके कुछ अच्छा हांसिल कर रहे होते हैं। आज का राजनीतिक परिदृश्य ये है कि अपने दोनों ओर कुछ ऐसा बनाये रखो जिससे " दाएं की बेहतरी देखते हुए भी , बाएं की नाकामी को प्राथमिकता देकर उससे खुद को बेहतर बता दो।" और यही प्रक्रिया फिर बाईं ओर से भी कर लो। अर्थात जब भी जो बेहतर हो उसे अनदेखा करके कमतर से खुद की तुलना कर लो। बस हो गया । हम सर्वश्रेष्ठ साबित हो गए। यही आज की राजनीति का चेहरा है।
कोई भी देश इस तरह तरक्की नहीं कर सकता। क्योंकि विकास के लिए उसे पहले अपनी पिछली उपलब्द्धि के स्तर का आंकलन करना होगा। हर देश के नागरिकों की क्षमता , ज्ञान और परिवेश सब अलग अलग होतें है। संसाधनों की उपलब्द्धि भी भिन्न है। साथ ही देश की आर्थिक स्थिति का स्तर भी निश्चित नहीं रहता। ऐसे में योजनाएं बनाते समय सब बातों का ध्यान रखते हुए एवं उनकी सफलता का प्रतिशत आँकते हुए लागू की जानी चाहिए।
यही मूल मंत्र है विकास की ओर बढ़ने का और निरंतर चलते रहने का। पर ये तत्कालीन सरकारों पर निर्भर करता है कि वह दूसरों को देख कर अपना देश चलाती हैं या अपना देश देख कर योजनाएं बनाती है .....!
कोई भी देश इस तरह तरक्की नहीं कर सकता। क्योंकि विकास के लिए उसे पहले अपनी पिछली उपलब्द्धि के स्तर का आंकलन करना होगा। हर देश के नागरिकों की क्षमता , ज्ञान और परिवेश सब अलग अलग होतें है। संसाधनों की उपलब्द्धि भी भिन्न है। साथ ही देश की आर्थिक स्थिति का स्तर भी निश्चित नहीं रहता। ऐसे में योजनाएं बनाते समय सब बातों का ध्यान रखते हुए एवं उनकी सफलता का प्रतिशत आँकते हुए लागू की जानी चाहिए।
यही मूल मंत्र है विकास की ओर बढ़ने का और निरंतर चलते रहने का। पर ये तत्कालीन सरकारों पर निर्भर करता है कि वह दूसरों को देख कर अपना देश चलाती हैं या अपना देश देख कर योजनाएं बनाती है .....!
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