एक पल्ले के किवाड़ की व्यथा ...!! 🚪

एक पल्ले का किवाड़ ....!!🚪
★★★★★★★★★★★★★                                                      
नए जमाने के घर के...🚪
दरवाज़े के एक किवाड़ ने,
पुरखों के दिनों की याद की , 
जब दो किवाड़ों के द्वार होते थे।
घर में पति और पत्नी के 
मजबूत जोड़े की तरह दोनों 
घर के पहरेदार होते थे।
तब दरवाज़े पर लगी साँकल,
मीठी सी खटखट सुनाती थी।
बाबूजी घर वापस आ गए,
ये बहु बेटियों को बताती थी।
दो किवाड़ यानी समरसता..
और घर में प्रवेश के लिए 
मध्य खड़े मेजबान के 
जुड़े हाथों की उत्सुकता ।
दो किवाड़ों की जोड़ी प्रतीक थी।
संबंद्धों के उचित व्यवस्थापन की,
चरमराहट के बाद भी संयुक्त परिवार में
सबके साथ जुड़े रहने के 
बड़प्पन की।
अब तो एकल परिवार के घर में 
दरवाज़े का किवाड़ भी एकल है।
जो खुल के एक कोने से ही बताए 
कि यहां सब कुशल मंगल है।
एक किवाड़ की अपनी व्यथा हैं ,
चौखट और दरवाज़े की घण्टी से
उलझी ताने बाने की कथा है।
अब तो घण्टी की भी अलग 
तानें हैं।
उसकी किरकिराहट में वो 
मिठास कहां
जो पुरखों के किवाड़ों के
 खजाने हैं।
आज तो हर घर रहना चाहता है ,
बस खुद में ही मस्त और अकेला
तभी शायद हर घर का मुख्य द्वार 
खड़ा है लेकर अकेला पल्ला ।


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