आज की सच्चाई ...! !

आज की सच्चाई....!
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वर्तमान परिवेश का यही चेहरा है। जो सहमत नहीं है वो भ्रमित कर दिए जाते हैं। बस इसी व्यवस्था को बनाये रखने के लिये एक जाल फैला कर रखा जाता है। जिसमें वो सब उलझे रहें जिनकी राय अलग है। इस अदृश्य जाल  को हर आम आदमी आज साथ लेकर जी रहा है। हम सब फँसे है पर आज़ाद होने का ढोंग किये जा रहे। जी रहें है क्योंकि जीना चाहते हैं और जीने के लिए समझौते को स्वीकार करते रहना पड़ता है।  विचारों की भिन्नता एक सामान्य बात है । यही भिन्नता कभी कुछ नई विचारधारा या अविष्कार को जन्म देती है। पर इस भिन्नता को बिरोध मान लेना कहाँ तक उचित है ? ?
         आज हर सामने वाला वही सुनना पसंद करता है जो उसके मन का हो। यदि ऐसा नहीं तो वह आपकी धारणा पर प्रश्न उठा कर उसे सवाल बना देगा। अब आप अपनी ही धारणा पर उठे सवाल में उलझ कर रह जाएंगे और जवाब ढूंढते रहेंगे । इसी तरह का भ्रम जाल वह कई लोगों पर फेंकेगा । लोगों की सोच बदलेंगी तो उसके प्रभाव का दायरा बढ़ेगा। 
          बस यूँ ही जिंदगी चल रही है । सहमत और भर्मित होने के बीच का अंतर ही अब लोगों की सोच पर हावी हो रहा है। जिससे विरोध  करने या अपनी राय रखने का चलन खत्म ही हो जाएगा। 
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