कभी कभी रोना भी अच्छा होता है

 कभी कभी रोना भी अच्छा होता है : ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

रोना किसी को अच्छा नहीं लगता। पर मानवीय भावनाओं में कभी कभी सुख दुःख या अप्रत्याशित पलों में आंसू निकल ही जाते हैं।

व्यज्ञानिक मानते है कि रोने के भावनात्मक कारणों से परे व्यज्ञानिक कारण भी महत्वपूर्ण हैं। वह है आंखों की चिकनाई बनाये रखना और उन्हें धूल, गंदगी और अवांछित चीजों से सुरक्षित रखना। आप सभी ने देखा होगा कि आंख में कचरा वगैरह गिरते ही आंसू आने लगते है। वह पानी की साथ उसे आंख से बाहर निकालने की प्रक्रिया है। आँसूओं के दो प्रकार होते हैं पहला बेसल और दूसरा रिप्लेक्स । बेसल गीलापन आंखों को नम करने के लिए सदैव उसमें बना रहता है। जबकि रिप्लेक्स बाहरी प्रतिक्रिया से पैदा होते है। जैसे धूल, कचरा,गंदगी वगैरह.....

एक अकेले मानव प्रजाति ही ऐसी है जो इन दो प्रकारों से अलग भावनात्मक अश्रु भी बहाती है। ऐसा इसलिए होता है कि एक मानव बहुत से लोगों से दिल से जुड़ाव महसूस करता है। जबकि पशु-पक्षियों में ऐसा नहीं होता। मानव शिशु जब बहुत छोटा होता है तब उसके भी आंसू नहीं निकलते। क्योंकि तब उसमें सभी के प्रति भावनात्मक जुड़ाव नहीं होता। वह केवल चिल्ला कर शोर मचाता है। जिससे ध्यान आकर्षित किया जा सके। 

शारीरिक दर्द में आँसू निकलने के अलावा भावनात्मक जुड़ाव या अलगाव भी आंसू बहने के कारण होता है। अक्सर बेबसी और दुख में रोने आंसू बहाने से मन हल्का महसूस करता है। जब मन की पीड़ा किसी से कही नहीं जा सकती तब हम उसे आंसूओं के जरिये बाहर निकालते हैं। किसी खास भावना जैसे चिंता, ख़ुशी, विस्मय आदि के दृश्य जब हम फिल्मों में देखते हैं तब भी हमारी अंतर्गत भावनाएं जोर मारती है तो आंसू निकलने लगते हैं। 

रोने का उम्र के साथ भी सम्बंध है। बचपन में हम अनुभवों के चलते आँसू बहाते हैं जैसे चोट लगना, कोई प्रिय चीज़ गुम हो जाना वगैरह। नवजात तो ध्यान आकर्षित करने के लिए रोते हैं पर उम्र बढ़ने के साथ शारीरिक दर्द के साथ ही भावनात्मक जुड़ाव और सामाजिक अनुभव भी रोने का कारण बनते हैं। बड़े होने के बाद रोने की प्रतिक्रिया अक्सर किसी प्रियजन को खोने, घर की याद, दिल टूटना वगैरह से होती है। उम्र बढ़ने पर अमूमन हमें चुपचाप रोने की आदत सी पड़ने लगती हैं। क्योंकि हम नहीं चाहते कि हमारी अंतर्निहित पीड़ा किसी को दिखाई पड़े। 

रोने का लिंग या sex पर भी प्रभाव पड़ता है। लड़कियां ज्यादा रोती हैं क्योंकि उनमें भावनात्मक अस्थिरता ज्यादा होती है।जबकि उनके मुकाबले पुरुष कम। समाज में लड़कों के लिए मजबूत दिखने का  नियम होने से उनका रोना उनकी कमजोरी माना गया है। जबकि उन्हें भी तो अंदर से उतनी ही तकलीफ़ महसूस होती है। 

लेकिन इन सब से परे रोना या आंसू बहाना सेहत के लिए अच्छा होता है। इसका मूड और सेहत दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। क्योंकि  तकलीफ़ अगर अश्रु के रूप में बह कर निकल जाए तो मन हल्का हो जाता है। कभी कभी मन के अंदर बहुत पीड़ा होने पर चीख चीख कर रोने की इच्छा करती है। लगता है कुछ तो अंदर जम सा गया है जिसे आंसूओं से पिघला कर बाहर निकाल देना है। इसलिए आँसू संकेत है कि कोई तो तकलीफ़ है। ऐसे में कोई दूसरा भी अगर अश्रु बहा रहा हो तो उसेये बता कर की उसकी पीड़ा में हम उसके साथ हैं,...उसके मन को हल्का किया जा सकता है।

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