भूल को अपराध ना मानें
भूल को अपराध ना मानें : ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मनुष्य जीवन में बहुत बार कुछ ऐसे भी कार्य हो जाते हैं जो कि बाद में ग्लानि का कारण बनते हैं। ये सोचने पे मजबूर करते हैं कि हमने ऐसा क्यों किया...जब भी उस बात की याद आती है मन निराशा से भर जाता है और हम परेशान होने लगते हैं।
पर एक कहावत के जरिये इसे समझें कि सही पते पर पहुंचने के लिए कभी कभी कुछ गलत रास्तों और मुकामों से भी गुजरना होता है। यदि जीवन में सब कुछ सही सही चाहते हैं तो भूल की गुंजाइश सदैव बनी रहेगी।
भूल कोई अपराध नहीं है। वह सिर्फ क्षणिक निराशा का कारण हो सकती है। सफलता एक यात्रा की तरह है जिसकी राह में अड़चनें आती हैं। और ये अड़चने कभी कभी कुछ ऐसा भी करवा देती हैं जो भूल साबित होता है। पर वह ग्लानि पालने वाला अपराध नहीं होता। सफलता एक क्रमिक परिश्रम है।जिसे बाजार से खरीदा नहीं जा सकता। इसे कर के कमाया जाता है। ये एक सतत विकास की प्रक्रिया है।
भूल तब तक सिर्फ भूल ही रहती है जब तक उसे आगे ना करने और सुधारने की जिजीविषा मन में होती हो। परंतु लगातार भूल करते रहना ही सबसे बड़ी मूर्खता है। और बारम्बार किये जाने पर ये गलती हो सकती है। भूल के अपराधबोध से बचने का एक और उत्तम साधन है कि जिसके प्रति भी भूल का अहसास हो रहा हो उससे क्षमा याचना करके माफ़ी ली जाए। जैसे ही वह उस गलती को भूलने की बात कहे उस समय वह भूल अपराधबोध नहीं रहती।
सही की खोज में कई बार भटकना पड़ता है। लेकिन जितना भटकाव होगा उतनी परिपक्वता आएगी। इसलिए भूल , भ्रांति , भटकाव बाधा नहीं है। बल्कि ये लक्ष्य के लिए पड़ाव है। जिन्हें पार करके ही सही तक पहुंचा जा सकता है।
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