सीमाएं तय करना जरूरी

 सीमाएं तय करना जरूरी :         ********************     

आजकल जिंदगी बहुत अव्यवस्थित सी हो गई है। हर किसी को देखो अपने अलग ही तरीके से जी रहा। साथ में उसे ये कह कर justify भी करता है कि यही चलन है या ये तो सभी लोग कर रहे...सभी कर रहे ये सोच कर तो किसी कार्य को सही नहीं माना जा सकता। जो शरीर, मन, समाज, परिस्थिति सभी को एक साथ स्वीकार्य होए वही सही हो सकता है। क्योंकि हमारा मन और बुद्धि तो बाहरी परिस्थितियों और साथ से हमेशा प्रभावित होती रहती है। 

उदाहरण के तौर पर देखें कि इंटरनेट की सहज उपलब्धता से बच्चे उम्र से पहले विकसित होने की कोशिश कर रहे... परिणामस्वरूप बलात्कार बढ़ गया है। तो क्या ये गलत रीति जो चलन में आई उसे ये कहकर स्वीकारा जाए कि आजकल तो ऐसा ही हो रहा। तो हम भी ऐसा कर सकते हैं।नहीं ऐसा नहीं हो सकता। क्योंकि जो सामाजिक या शारिरिक दृष्टि से सही नहीं वह गलत ही है। 

इसके लिए जीवन में सीमाएं तय करना जरूरी है। सोने जागने ,खाने पीने,बाहर आने जाने और भाषाई व्यवहार की सीमाएं ये सब तय करना होगा । और इसकी एक निर्धारित परिधि तय करनी होगी।

सुबह सही समय पर उठना, व्यायाम आदि करना, व्यक्तिगत संबंद्धि कार्य खुद करना, स्कूल या कार्य पर सही समय पर जाना, समय से लौटना, सबके साथ मिलकर खाना खाना पढ़ने या दफ्तर का अतिरिक्त कार्य का निश्चित समय तय करना और फर समय पर सोना। 

जीवन में व्यवस्थित होना बहुत जरूरी है। क्योंकि सीमा या परिधि में ना रहकर तो नदी भी बाढ़ का रूप ले लेती है। अपने तट की सीमा में रहकर बहने से ही नदी जीवन देती है अन्यथा वह तबाही ही लाती है। इसीलिए जीवन में भी हर क्षण हर स्थिति में कुछ सीमाएं निर्धारित कर के रखनी चाहिए। 

खाने की भी सीमा होती है। अगर दो रोटी से पेट भर जाता है और हम स्वाद के चलते 5 रोटी खा लें तो पेट उसे स्वीकार नहीं कर पाता। और उल्टियां हो जाती है।ये प्रकृति का नियम है कि सीमाओं में रहना विकास का द्योतक है और सीमाएं तोड़ना विनाश का। 

ये सीमाएं सिर्फ उन कार्यों के लिए लागू हो सकती हैं जिन पर सामाजिक और पारिवारिक नियमों के हिसाब से चलने की बाध्यता है। परंतु यही सीमाएं अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत करने, अपनी skills को सुधारने और शारीरिक limits को तोड़ने में नहीं होनी चाहिए। क्योंकि इस ओर जितना boundaries cross की जाएंगी। व्यक्तित्व उतना बेहतर होता जाएगा। 

इसलिए सीमाएं निर्धारित की जाए पर तब जब परिवार समाज और परिस्थिति की बाध्यता हो। जिससे हम सब कर बीच अपनी जगह मुस्तक़िल बना सकें।

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