छवि बिगाड़ता कड़वा सत्य …………!
इसे विडम्बना नहीं तो और क्या कहेंगे कि अब से भारतीय छात्रों को विदेश जा कर पढ़ने के मौके नहीं मिल पाएंगे। क्योंकि धीरे धीरे हिंदुस्तान की असलियत लोगों के सामने आ रही है। और इस के जिम्मेदार यहाँ के मर्द हैं। शायद पुरुषों को ये पढ़ कर अच्छा न लगे पर यही सत्य है। एक भारतीय छात्र ने जर्मनी की लिपजिंग यूनिवर्सिटी में बायो केमिस्ट्री विषय में इंटर्नशिप के लिए आवेदन दिया था। वह छात्र अपनी योग्यतानुसार इस पढाई के लिए पात्रता रखता था। उसे इसमें दाखिला मिल ही जाना चाहिए था। परन्तु उसके आवेदन के जवाब में भारत का एक घिनौना सच सामने आ गया। उस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने ये लिख कर आवेदन ख़ारिज किया कि भारत दुष्कर्म प्रधान देश बनता जा रहा है। ये दुखद सत्य है। उनके संरक्षण में सैकड़ों युवतियां पढ़ रही हैं। वह उन युवतियों की सुरक्षा के मद्देनजर किसी भी भारतीय छात्र को अपने संस्थान में दाखिला नहीं दे सकते। उनका ये मानना है कि भारतीय पुरुष अपनी मानसिकता को नहीं त्याग सकते चाहे वह कही भी रहें। ये जान कर सिवाय शर्मिंदगी के कुछ और हांसिल नहीं हो रहा। आखिर क्या हो रहा है भारतीय समाज को और हम किस तरह की छवि प्रस्तुत कर रहें है लोगों के सामने।
मेरी नजर में यही रवैया मिलना चाहिए। सही है। जब ये पुरुष अपने देश की औरतों की इज्जत नहीं कर सकते तो दूसरे देश को इन पर कैसे भरोसा होगा। फिर तब , जब ये अहसास हो की यहाँ कौन सा कोई हमारा बैठा है हमें रोकने या टोकने वाला। वहाँ जा कर स्वछँदता और बढ़ गयी और उसका नाजायज फायदा उठा लिया तो अपने साथ देश का भी नाम ख़राब होगा। इस लिए मुझे ये वजह वाजिब लगी। कम से कम इस तरह की वजहों से भारतीय युवकों को ये तो अहसास होगा कि ये घटनाएं अब सिर्फ स्त्री का भविष्य ही नहीं बल्कि उनके भविष्य को भी नष्ट कर रही हैं। जब तक हर स्त्री बेख़ौफ़ हो कर नहीं जियेगी तब तक भारत की यही पहचान कायम रहेगी। हो सकता है कि कल किसी अंतर्राष्ट्रीय सभा में भी इस तरह का मुद्दा उठाया जाए और हर भारतीय पुरुष को इसी नजर से देखा जाए। यदि अनुमान लगाएं तो आज 80 से 85 % पुरुष गन्दी नियत रखते हैं। जो 10 से 15 % बचें है वह समाज , परिवार , नौकरी , बच्चों और इज्जत का सोच कर जबरन खुद को रोकते हैं। वह ये जानते हैं कि उनकी प्रतिष्ठा के लिए एक परिवार का हो कर रहना आवश्यक है। यही उनका बंधन है। वरना भरी थाली जब हर कहीं आस पास दिख रही हो तो मन मारना जबरन ही तो होगा। क्या करूँ यही सत्य है इस लिए लिखने पर विवश हो गयी। अबला नारी हाय तुम्हारी यही कहानी ,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।
इसे विडम्बना नहीं तो और क्या कहेंगे कि अब से भारतीय छात्रों को विदेश जा कर पढ़ने के मौके नहीं मिल पाएंगे। क्योंकि धीरे धीरे हिंदुस्तान की असलियत लोगों के सामने आ रही है। और इस के जिम्मेदार यहाँ के मर्द हैं। शायद पुरुषों को ये पढ़ कर अच्छा न लगे पर यही सत्य है। एक भारतीय छात्र ने जर्मनी की लिपजिंग यूनिवर्सिटी में बायो केमिस्ट्री विषय में इंटर्नशिप के लिए आवेदन दिया था। वह छात्र अपनी योग्यतानुसार इस पढाई के लिए पात्रता रखता था। उसे इसमें दाखिला मिल ही जाना चाहिए था। परन्तु उसके आवेदन के जवाब में भारत का एक घिनौना सच सामने आ गया। उस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने ये लिख कर आवेदन ख़ारिज किया कि भारत दुष्कर्म प्रधान देश बनता जा रहा है। ये दुखद सत्य है। उनके संरक्षण में सैकड़ों युवतियां पढ़ रही हैं। वह उन युवतियों की सुरक्षा के मद्देनजर किसी भी भारतीय छात्र को अपने संस्थान में दाखिला नहीं दे सकते। उनका ये मानना है कि भारतीय पुरुष अपनी मानसिकता को नहीं त्याग सकते चाहे वह कही भी रहें। ये जान कर सिवाय शर्मिंदगी के कुछ और हांसिल नहीं हो रहा। आखिर क्या हो रहा है भारतीय समाज को और हम किस तरह की छवि प्रस्तुत कर रहें है लोगों के सामने।
मेरी नजर में यही रवैया मिलना चाहिए। सही है। जब ये पुरुष अपने देश की औरतों की इज्जत नहीं कर सकते तो दूसरे देश को इन पर कैसे भरोसा होगा। फिर तब , जब ये अहसास हो की यहाँ कौन सा कोई हमारा बैठा है हमें रोकने या टोकने वाला। वहाँ जा कर स्वछँदता और बढ़ गयी और उसका नाजायज फायदा उठा लिया तो अपने साथ देश का भी नाम ख़राब होगा। इस लिए मुझे ये वजह वाजिब लगी। कम से कम इस तरह की वजहों से भारतीय युवकों को ये तो अहसास होगा कि ये घटनाएं अब सिर्फ स्त्री का भविष्य ही नहीं बल्कि उनके भविष्य को भी नष्ट कर रही हैं। जब तक हर स्त्री बेख़ौफ़ हो कर नहीं जियेगी तब तक भारत की यही पहचान कायम रहेगी। हो सकता है कि कल किसी अंतर्राष्ट्रीय सभा में भी इस तरह का मुद्दा उठाया जाए और हर भारतीय पुरुष को इसी नजर से देखा जाए। यदि अनुमान लगाएं तो आज 80 से 85 % पुरुष गन्दी नियत रखते हैं। जो 10 से 15 % बचें है वह समाज , परिवार , नौकरी , बच्चों और इज्जत का सोच कर जबरन खुद को रोकते हैं। वह ये जानते हैं कि उनकी प्रतिष्ठा के लिए एक परिवार का हो कर रहना आवश्यक है। यही उनका बंधन है। वरना भरी थाली जब हर कहीं आस पास दिख रही हो तो मन मारना जबरन ही तो होगा। क्या करूँ यही सत्य है इस लिए लिखने पर विवश हो गयी। अबला नारी हाय तुम्हारी यही कहानी ,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।
Comments
Post a Comment