संस्कारों की नीवं के साथ पालन .............!
चलिए आज एक विषय पर चर्चा करें जिस की आज समाज को सबसे ज्यादा जरूरत है। वह है स्त्री की अस्मिता का बचाव।उसके लिए जो सबसे बेहतर तरीका है आज उसी के बारें में बात करेंगे वह है अपने घर जन्मे लड़के की मानसिकता को सुधार कर रखना , उसे बेहतर इंसान बनने में मदद करना और स्त्री के प्रति इज्जत का भाव बनाये रखने की सीख देना। आज आप नेट पर देखें तो बलात्कार से सम्बंधित लाखों विडिओ मिल जाएंगे। हर वीडियो एक ही सन्देश देता है कि औरत की इज्जत करना सीखों वरना तुम अपने साथ देश का भी नाम ख़राब कर रहे हो। ये एक ऐसा सत्य है जिसे सिर्फ पुरुषों को ही नहीं बल्कि पुरे परिवार को स्वीकार करना होगा। तभी इस घृणित मानसिकता से हम सभी ऊपर उठ पाएंगे। अब सोचने का विषय ये है कि इस में परिवार को कैसे सम्मिलित किया जा सकता है ? तो इस के लिए एक रास्ता अपनाना पड़ेगा। सब से पहले पुत्र की समझ पनपने के बाद उसे ये समझाना जरूरी है कि माता पिता (एक स्त्री और पुरुष ) का रिश्ता जिम्मेदारी से जुड़े प्रेम के जरिये बंधा है। विवाह का सही अर्थ है सामाजिक जिम्मेदारी को सम्मान और निष्ठा से निभाना। दो व्यक्ति परस्पर इस लिए जुड़े रहते हैं क्योंकि उनके ऊपर एक परिवार को बनाने और चलाने की जिम्मेदारी आ जाती है न कि सिर्फ शारीरिक संबंध निभाने के लिए। विवाह में शारीरिक संबंधों को इज्जत इस लिए दी जाती है क्योंकि इन्ही से उत्पन्न हुए पुत्रों को समाज में सम्माननीय स्थान प्राप्त हो पाता है। स्त्री पुरुष के बीच लिंग भेद का आकर्षण बढ़ती उम्र के साथ जायज है। पर स्त्री पुरुष के बीच के शारीरिक संबंधों को इज्जत देना ही सही संस्कार कहलाता है। परिवार को यह इत्मिनान भी करना होगा कि परिवार की तमाम स्त्रियों के बीच रहने वाले पुत्र को हर स्त्री को रिश्तों से ऊपर उठ कर एक स्त्री के रूप में भी इज्जत देनी होगी। सिर्फ रिश्तों को इज्जत देने के कारण समाज की हर स्त्री इज्जत की हक़दार नहीं बन पाती। एक परिवार में रहने वाला युवक अपने किसी भी रिश्ते वाली को छोड़ कर बाकियों को अपने मनोरंजन का सामान समझ लेता हैं। इस लिए रिश्ते के बजाये लिंग को सम्मान की आवश्यकता है।
एक लड़के को ये भी समझाना जरूरी है कि उस का जन्म भी किसी की कोख से ही हुआ है। इस लिए हर कोख की पवित्रता बनाये रखना उसकी जिम्मेदारी बनती है। क्योंकि आज उसके उठाये हर सुख और जीवन के हर ऐश का कारण कोई औरत ही है। हम अपने लड़कों को ईश्वर की बनाई इस देन की इज्जत करना जब तक बचपन से नहीं सिखाएंगे तब तक हम उनसे संयत व्यव्हार की उम्मीद नहीं कर सकते। इस में माता पिता की भूमिका महत्वपूर्ण है। बच्चा सबसे पहले उन्ही के संपर्क में आता है। और उन्हें हम अपना रिश्ता कैसा दिखा रहें है ये निर्धारित करता है कि उनका मानसिक विकास कैसा होगा। यदि हम ही उन्हें ये अहसास करा देंगे कि हम सिर्फ शारीरिक रूप से पति पत्नी का किरदार निभा कर गृहस्थी चला रहें है। तो उनके मन में सिर्फ इस तरह के संबंधों को ही जगह मिलेगी। यदि हम उनके सामने ये प्रस्तुत करते हैं कि अब हम भावनात्मक रूप से जुड़ कर साथ रह रहे हैं जो उनके विकास और सार संभाल के लिए हर संभव प्रयास करने को तैयार है , तो माता पिता के प्रेम की एक अलग छवि बालक के सामने आएगी। झुग्गी झोपड़ियों के बच्चे क्यों संस्कार नहीं सीख पाते क्योंकि उनके सामने उनके माता पिता वह सब करतें है जो उनका जानना अवांछनीय है। उम्र और समय से पहले जानने की ललक हमेशा गलत रास्ता दिखाती है। इस लिए हम अपने व्यव्हार से अपने बच्चे के विचार बदल सकते हैं। और ये करना जरूरी हो गया है।
चलिए आज एक विषय पर चर्चा करें जिस की आज समाज को सबसे ज्यादा जरूरत है। वह है स्त्री की अस्मिता का बचाव।उसके लिए जो सबसे बेहतर तरीका है आज उसी के बारें में बात करेंगे वह है अपने घर जन्मे लड़के की मानसिकता को सुधार कर रखना , उसे बेहतर इंसान बनने में मदद करना और स्त्री के प्रति इज्जत का भाव बनाये रखने की सीख देना। आज आप नेट पर देखें तो बलात्कार से सम्बंधित लाखों विडिओ मिल जाएंगे। हर वीडियो एक ही सन्देश देता है कि औरत की इज्जत करना सीखों वरना तुम अपने साथ देश का भी नाम ख़राब कर रहे हो। ये एक ऐसा सत्य है जिसे सिर्फ पुरुषों को ही नहीं बल्कि पुरे परिवार को स्वीकार करना होगा। तभी इस घृणित मानसिकता से हम सभी ऊपर उठ पाएंगे। अब सोचने का विषय ये है कि इस में परिवार को कैसे सम्मिलित किया जा सकता है ? तो इस के लिए एक रास्ता अपनाना पड़ेगा। सब से पहले पुत्र की समझ पनपने के बाद उसे ये समझाना जरूरी है कि माता पिता (एक स्त्री और पुरुष ) का रिश्ता जिम्मेदारी से जुड़े प्रेम के जरिये बंधा है। विवाह का सही अर्थ है सामाजिक जिम्मेदारी को सम्मान और निष्ठा से निभाना। दो व्यक्ति परस्पर इस लिए जुड़े रहते हैं क्योंकि उनके ऊपर एक परिवार को बनाने और चलाने की जिम्मेदारी आ जाती है न कि सिर्फ शारीरिक संबंध निभाने के लिए। विवाह में शारीरिक संबंधों को इज्जत इस लिए दी जाती है क्योंकि इन्ही से उत्पन्न हुए पुत्रों को समाज में सम्माननीय स्थान प्राप्त हो पाता है। स्त्री पुरुष के बीच लिंग भेद का आकर्षण बढ़ती उम्र के साथ जायज है। पर स्त्री पुरुष के बीच के शारीरिक संबंधों को इज्जत देना ही सही संस्कार कहलाता है। परिवार को यह इत्मिनान भी करना होगा कि परिवार की तमाम स्त्रियों के बीच रहने वाले पुत्र को हर स्त्री को रिश्तों से ऊपर उठ कर एक स्त्री के रूप में भी इज्जत देनी होगी। सिर्फ रिश्तों को इज्जत देने के कारण समाज की हर स्त्री इज्जत की हक़दार नहीं बन पाती। एक परिवार में रहने वाला युवक अपने किसी भी रिश्ते वाली को छोड़ कर बाकियों को अपने मनोरंजन का सामान समझ लेता हैं। इस लिए रिश्ते के बजाये लिंग को सम्मान की आवश्यकता है।
एक लड़के को ये भी समझाना जरूरी है कि उस का जन्म भी किसी की कोख से ही हुआ है। इस लिए हर कोख की पवित्रता बनाये रखना उसकी जिम्मेदारी बनती है। क्योंकि आज उसके उठाये हर सुख और जीवन के हर ऐश का कारण कोई औरत ही है। हम अपने लड़कों को ईश्वर की बनाई इस देन की इज्जत करना जब तक बचपन से नहीं सिखाएंगे तब तक हम उनसे संयत व्यव्हार की उम्मीद नहीं कर सकते। इस में माता पिता की भूमिका महत्वपूर्ण है। बच्चा सबसे पहले उन्ही के संपर्क में आता है। और उन्हें हम अपना रिश्ता कैसा दिखा रहें है ये निर्धारित करता है कि उनका मानसिक विकास कैसा होगा। यदि हम ही उन्हें ये अहसास करा देंगे कि हम सिर्फ शारीरिक रूप से पति पत्नी का किरदार निभा कर गृहस्थी चला रहें है। तो उनके मन में सिर्फ इस तरह के संबंधों को ही जगह मिलेगी। यदि हम उनके सामने ये प्रस्तुत करते हैं कि अब हम भावनात्मक रूप से जुड़ कर साथ रह रहे हैं जो उनके विकास और सार संभाल के लिए हर संभव प्रयास करने को तैयार है , तो माता पिता के प्रेम की एक अलग छवि बालक के सामने आएगी। झुग्गी झोपड़ियों के बच्चे क्यों संस्कार नहीं सीख पाते क्योंकि उनके सामने उनके माता पिता वह सब करतें है जो उनका जानना अवांछनीय है। उम्र और समय से पहले जानने की ललक हमेशा गलत रास्ता दिखाती है। इस लिए हम अपने व्यव्हार से अपने बच्चे के विचार बदल सकते हैं। और ये करना जरूरी हो गया है।
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