Women's Day……Blackout day !

आप भी सोचेंगे कि कई दिन तक कुछ भी न लिखने के बाद क्षमा माँगना और अपेक्षा करना कि आप माफ़ कर देंगे, सही नहीं है। पर जीवन की कुछ व्यस्तताएं ऐसी होती है जिसे टाला नहीं जा सकता। पिछले दिनों एक तो त्यौहार की व्यस्तता और फिर मेरा घर बन रहा है उसकी व्यस्तता , दोनों ने ही सारा समय छीन लिया।  मैं इतना भी समय नहीं निकल पाई कि कुछ नया सोच पाऊँ और लिखूं।  फिर से क्षमा प्रार्थी हूँ। चलिए चर्चा करतें है 8 मार्च को बीते महिला दिवस पर …… महिला दिवस क्यों मानते है ?  साल भर जूती की नोक पर रहने वाली महिला को ये अहसास कराने के लिए जिस तरह कोई भी त्यौहार वर्ष में एक बार मना कर उसकी पूर्ति कर लेतें हैं उसी तरह महिला दिवस भी सिर्फ एक दिन औरत को खास अहसास कराने के लिए है।  बाकि के 364 दिन पुरुष के है। 
                                     वाह क्या बात है .......  24 अक्टूबर 1975 को आइसलैंड की सभी महिलाओं ने सामूहिक बहिष्कार के जरिये औरत के सामान अधिकार के लिए आवाज उठाई थी। शहर और गाँव की सभी 90 % महिलाओं ने अपने घर और दफ्तर के सभी कार्य त्याग कर सड़कों पर प्रदर्शन किया।  जिस से पुरे देश में काम ठप्प का माहौल बन गया। हॉस्पिटल, एयरपोर्ट, स्कूल , दफ्तर सभी बंद पड़ गए और सरकार को समानता के अधिकार के लिए सोचने पर मजबूर होना पड़ा। अगले ही बजट में सरकार को  समानता के अधिकार के लिए संसद में बिल पास करना पड़ा। जिस से समान वेतन ,समान लिंग अनुपात , समान नहीं बल्कि अतिरिक्त अवकाश आदि को मान्यता देनी पड़ी। ये घटना इस बात की सबूत है कि यदि औरत हाथ चलाना बंद कर दे तो देश ठप्प हो सकता है। ये बात अभी भारत को समझ नहीं आ रही है।  शायद जब तक समझ आएगी तब तक बहुत देर हो जायेगी। क्योंकि हम सिर्फ महिला दिवस पर महिला का सम्मान कर के साल भर उसे प्रताड़ित होने के लिए छोड़ देते हैं। अंदाजा लगाइये अगर ऐसा हो जाए तो शायद हम अन्न के लिए भी तरस जाएँ क्योंकि महिला जनसँख्या का करीब आधा हिस्सा खेत में ही काम करता है। ये इस तरह blackout मुझे लगता है कि भारत के लोगों के लिए सबक बन सकता है अगर इसे अमल में लाया जाए। औरत की सही जगह उसने बना ली है अब जरूरत है कि पुरुष उस की स्थिति का सम्मान करें।  

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