हौसले और ज़ज्बे की जीत ..........!
उड़ान हौसलों से होती है पंखों से नहीं …………अभी हाल ही में हुई दो घटनाओं ने ये सच साबित कर दिया। इस वक्त बोर्ड परीक्षाओं का दौर है और सभी छात्र-छात्रा अपनी अपनी तैयारी में व्यस्त हैं। बेहतर और बेहतर करने की चाह हर मेधावी छात्र की चाह होती है। जोधपुर के पास ही की एक घटना है जिसमें माँ की मृत्यु के 6 घंटे बाद एक छात्रा ने बोर्ड परीक्षा दी। अपने दुःख और वेदना को एक तरफ रख कर उसने अपने पुरे साल को ख़राब होने से बचाया। जोधपुर के ही पास के एक गावं की दूसरी घटना में सुबह शौच के लिए गयी एक छात्रा के साथ तीन युवकों ने सामूहिक बलात्कार किया। दूसरे दिन उस बच्ची की बोर्ड परीक्षा थी। सारे दुःख , सारी तकलीफ भूल कर करीब 21 घंटे बाद उसने परीक्षा दी। ये दोनों घटनाएँ एक सबक है उस हर टूटते हुए इंसान के लिए जो हौसले हार कर अपने कर्म से डिग जाता हैं। जीवन में तकलीफें कभी भी कह कर नहीं आती। जिस से व्यक्ति उनका सामना करने की तैयारी पहले से कर के रखे। तात्कालिक रूप से लिए गए निर्णयों से ये साबित किया जा सकता है कि गुजरी हुई अप्रिय घटना का मूल्य ज्यादा है या आने वाले सफल भविष्य का। दोनों बालिकाएं अपने अपने सदमे को चाहती तो जीवन भर साथ ले कर चल सकती थी। पर उन्होंने इस से ज्यादा जरूरी अपने उस आने वाले कल को चुना। जो उनकी जिंदगी बेहतर बना सकता है। सही कहतें हैं स्त्री की सहनशक्ति असीमित है।
समय कीमती है ये सभी जानते हैं। पर दुःख में हम उस समय को यूँ ही व्यर्थ गवाने लगते है। क्योंकि ये तो सभी जानते है कि रो -धो कर किसी समस्या का हल नहीं निकला जा सकता। उसके लिए हौसले से एक सही निर्णय लेने की आवश्यकता है। जो भी अप्रिय परिस्थितियां सामने आयीं वह एक हादसे के रूप में आ कर चली गईं। लेकिन जो कल है वह उस अप्रिय घटना का गवाह नहीं बनना चाहिए। इन दोनों घटनाओं ने जीवन का एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया है कि सुख दुःख के आने जाने या प्रति क्षण बदलते रहने का प्रभाव कभी भी भविष्य के ऊपर नहीं पड़ना चाहिए। उस के लिए वर्तमान में एक सही निर्णय की जरूरत है। जो अपने कड़वे भूत को भुला कर लिया जा सकता है।
उड़ान हौसलों से होती है पंखों से नहीं …………अभी हाल ही में हुई दो घटनाओं ने ये सच साबित कर दिया। इस वक्त बोर्ड परीक्षाओं का दौर है और सभी छात्र-छात्रा अपनी अपनी तैयारी में व्यस्त हैं। बेहतर और बेहतर करने की चाह हर मेधावी छात्र की चाह होती है। जोधपुर के पास ही की एक घटना है जिसमें माँ की मृत्यु के 6 घंटे बाद एक छात्रा ने बोर्ड परीक्षा दी। अपने दुःख और वेदना को एक तरफ रख कर उसने अपने पुरे साल को ख़राब होने से बचाया। जोधपुर के ही पास के एक गावं की दूसरी घटना में सुबह शौच के लिए गयी एक छात्रा के साथ तीन युवकों ने सामूहिक बलात्कार किया। दूसरे दिन उस बच्ची की बोर्ड परीक्षा थी। सारे दुःख , सारी तकलीफ भूल कर करीब 21 घंटे बाद उसने परीक्षा दी। ये दोनों घटनाएँ एक सबक है उस हर टूटते हुए इंसान के लिए जो हौसले हार कर अपने कर्म से डिग जाता हैं। जीवन में तकलीफें कभी भी कह कर नहीं आती। जिस से व्यक्ति उनका सामना करने की तैयारी पहले से कर के रखे। तात्कालिक रूप से लिए गए निर्णयों से ये साबित किया जा सकता है कि गुजरी हुई अप्रिय घटना का मूल्य ज्यादा है या आने वाले सफल भविष्य का। दोनों बालिकाएं अपने अपने सदमे को चाहती तो जीवन भर साथ ले कर चल सकती थी। पर उन्होंने इस से ज्यादा जरूरी अपने उस आने वाले कल को चुना। जो उनकी जिंदगी बेहतर बना सकता है। सही कहतें हैं स्त्री की सहनशक्ति असीमित है।
समय कीमती है ये सभी जानते हैं। पर दुःख में हम उस समय को यूँ ही व्यर्थ गवाने लगते है। क्योंकि ये तो सभी जानते है कि रो -धो कर किसी समस्या का हल नहीं निकला जा सकता। उसके लिए हौसले से एक सही निर्णय लेने की आवश्यकता है। जो भी अप्रिय परिस्थितियां सामने आयीं वह एक हादसे के रूप में आ कर चली गईं। लेकिन जो कल है वह उस अप्रिय घटना का गवाह नहीं बनना चाहिए। इन दोनों घटनाओं ने जीवन का एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया है कि सुख दुःख के आने जाने या प्रति क्षण बदलते रहने का प्रभाव कभी भी भविष्य के ऊपर नहीं पड़ना चाहिए। उस के लिए वर्तमान में एक सही निर्णय की जरूरत है। जो अपने कड़वे भूत को भुला कर लिया जा सकता है।
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