व्यस्तता और विश्वास  .............!
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता … कभी जमीं तो कभी आसमा नहीं मिलता। परेशानियां जिन्दगी  का हिस्सा बन कर वह समय भी चुरा लेती हैं जो सिर्फ हमारा होता है।  जिसे हमने अपने लिए कुछ खास या कुछ creative करने के लिए बचा के रखा है। समय वही है दिन के पंद्रह घंटे……… सुबह 6  से रात 9 बजे तक। कामों की फेहरिस्त कम नहीं होती। सही कहा गया है कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। मैंने समय खोया है। इधर व्यस्तता ने मुझसे मेरा अपना समय छीन  कर मुझे मुझ से ही दूर कर दिया है। और मैं दूसरों की ही तरह एक आम सा जीवन जीयें जा रही हूँ।वही रोजमर्रा के काम , और अगले दिन की योजनाएं यही सब कुछ जिंदगी बन कर रह गया है। खैर जिन्दगी से गीले शिकवे कर के आगे नहीं बढ़ा जा सकता। इस लिए एक mutual राह अपंनाने की कोशिश में एक समझौता ये कर लिया कि जैसे भी होगा , जब भी होगा पहले अपने अंदर की क्रिएटिविटी को प्राथमिकता दी जाए जिस से अच्छा इंसान बने रहने के जूनून को मरने ना दिया जाए। जैसा की आप को पहले भी जिक्र किया था कि मेरा घर बन रहा है और सब कुछ अपने मुताबिक करवाने की चाह ने मेरी उपस्थिति को मेरी प्राथमिकता बना दिया है। खुश हूँ। हर किसी को अपने लिए एक मनमाफिक आशियाने की आवश्यकता होती है। जिसमे रहकर वह बाहर के तमाम तनाव को भूल सके और खुश रह कर अपने और अपनों के लिए बहुत कुछ कर सके। वह ख़ुशी जो उसके लिए जीने का हौसला बन जाती है। इसी की तलाश में अपना समय खो रही हूँ।  पर मैं जानती हूँ की ये व्यस्तता क्षणिक है। आज व्यस्त हूँ पर कल यही व्यस्तता मुझे मेरे समय खोने के अहसास को दोगुने सुकून के साथ वापस करेगी। सब का जीवन कभी न कभी ऐसे दौर से गुजरता  है जब उसे अपनी प्राथमिकताएं तय करनी पड़ती हैं। चुनना पड़ता है कि जीवन के किस पड़ाव को वह ज्यादा महत्व दे कर आगे की जिंदगी बेहतर बना सकता है। समझदारी से उस समय का सामना आने वाले कल की नीवं मजबूत करने में मदद करता है। आज मैं व्यस्तता के कारण बहुतों का विश्वास खो रही हूँ जो बेसब्री से मेरे आलेखों की प्रतीक्षा करतें है। क्षमा प्रार्थी हूँ पर यही जीवन है और मेरे लिए इस का सामना करना जरूरी है। 

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