
अभी हाल ही में इंटरनेट पर एक ड्रेस के रंग को ले कर खासा बवाल मचा था। सभी ने उस को अलग अलग रंग का देखा और बताया। आज कल कई बेफजूल की बातों को सावर्जनिक चर्चा का विषय बना कर बेवजह समय ख़राब किया जाता है। मैंने भी यही सोचा और इस पर ध्यान नहीं दिया। पर जब बाद में उस ड्रेस के रंग को चर्चा का विषय बनाने का कारण समझ आया तब पता चला कि अब महिलाओं के लिए आवाज उठाने के तरीके बदलने लगे हैं। नई सोच के लिए कोई नया ही तरीका अपनाना पड़ेगा। जो ड्रेस चर्चा का विषय थी वह वाकई में नीले और काले रंग की थी जिसे एडिटिंग के जरिये हल्के रंग का बना दिया गया था। और उस ड्रेस को एक मॉडल को पहना दिया गया। उस ड्रेस के रंग पर चर्चा तो सभी करते रहें पर शायद किसी ने भी उस मॉडल के शरीर पर पड़े नील और चोट के निशानों की ओर तवज्जो नहीं दी। काफी चर्चा के बाद उसे बनाने वालों ने तब कहा कि ये आम है कि हमें किसी महिला के शरीर पर नीला और काला रंग नजर नहीं आता। चाहे वह कपड़े का हो या चोट का। ये मामला महिला हिंसा से जुड़ा है। पहले उस ड्रेस के जरिये लोगों को उसकी ओर आकर्षित कर के तब उसका सही मकसद बताने से स्थिति परिवर्तित हो गयी। तब सबने उस मुद्दे पर ध्यान दिया जो सही था।
आज इंटरनेट एक अच्छा माध्यम बन गया है सब तक अपनी बात पहुँचाने का। पर क्या जो हम पढ़ते और देखते है उस से हमारी सोच या रहन सहन बदलता है ये सोचने का विषय है। स्त्री में तो ऐसा ही देखने में आया है। स्त्री को ऊपरी तौर पर देखने वाले कभी भी उसके भीतर छुपी तकलीफ को नहीं जान सकते। आज चाहे स्त्री कितना भी आधुनिक होने का दम्भ भर ले पर वह हमेशा की तरह कमजोर ही रहेगी। आज जरूरत है पढ़ कर ,सुन कर, देख कर हम जो भी समझते है उसे अपने जीवन में समाहित करें और अपनी जीवन शैली में बदलाव लाएं।
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