महत्वाकांक्षा का चारित्रिक नाप-तोल ………!

किसी के चरित्र को किसी भी रूप में किसी पैमाने से मापा नहीं जा सकता।  यूँ तो महिलाओं को ही पीड़ित और दमित माना जाता है। पर जरूरी नहीं की सभी महिलाएं ऐसी ही सोच और धारणा रखती हो। हाल ही में इन्द्राणी मुखर्जी के एक समाचार ने ये साबित कर दिया कि महिलाऐं भी खुद को ऊपर उठाने और अपनी एक जगह बनाने के लिए किस हद तक गिर सकती है और साथ ही दूसरों का इस्तेमाल कर सकती है। महत्वाकांक्षा की प्रबलता इतनी तीव्र नहीं होनी चाहिए कि सही गलत या नियत सीमाओं को तोड़ कर आगे निकलना पड़े। 
                इन्द्राणी मुखर्जी एक ऐसा ही नाम है जिसे अगर हम शायद एक कानूनी जिस्मफरोशी के जरिये बड़ी बनने की शख्शियत माने तो गलत नहीं होगा। एक वेश्या कोठे पर बैठ कर पर पुरुषों के साथ अनैतिक सम्बन्ध जोड़ती है जिसे हम सभी गलत मानते हैं। पर इस तरह के रिश्तों का क्या जो खुद को बुलंदी पर बनाये रखने के लिए प्रयोग में लाये जातें हैं। इन्द्राणी मुखर्जी ने यही सब किया। ऊँचा बढ़ने की  चाह ने इसे बचपन से ही पुरुषों को रिझाना सीखा दिया था तभी एक बार ये कम उम्र में वेश्यावृति के चक्कर में पकड़ी गयी थी।  आसाम के गौहाटी में पली बढ़ी इन्द्राणी को सभी परी बोरा के नाम से जानते थे।  उसने बचपन से ही अपने परिवार में रिश्तों की उलझन देखी थी।  उसके पिता सौतेले थे जो बयानों के अनुसार परी यानि इन्द्राणी का शोषण भी करते थे। शायद यही वजह है कि बचपन से शोषित होने के कारण इन्द्राणी ने ये सोच लिया होगा कि अब वह इन पुरुषों को ही सीढ़ी बना कर आगे बढ़ेगी। अपने परिवार की स्थिति से परेशान इन्द्राणी ने 16 साल की उम्र में ही घर छोड़ कर खुद से दोगुने बड़े  सिद्धार्थ दास से शादी की। उसे वो सुख सुविधा मिलने लगी जिस की उसे चाह थी। इसी विवाह से उसे शीना और मिखाईल नाम की दो संतानें हुई। लेकिन साल भर बाद ही अपनी पाई हुई जिंदगी से ऊब कर उसने कुछ  और ज्यादा की चाह रखनी प्रारम्भ कर दी। जिस के कारण सिद्धार्थ से उसने तलाक ले लिए और अलग हो गयी।  अब उसे कोई दूसरा शख्श चाहिए था जो उसे और उसके सपनों को उड़ान दे सके , और इस बार उसे कोलकत्ता का एक नामचीन व्यापारी संजीव खन्ना मिला। जिस को उसने अपना अतीत छुपा कर विवाह के लिए राजी कर लिया। संजीव से भी विवाह के बाद इन्द्राणी ने उसे मोहरे की तरह प्रयोग किया और उसके जरिये रसूख वाले लोगो से परिचय बढ़ाना शुरू कर दिया। ताकि वह अपनी खुद की एक पहचान बना सके। इस रिश्ते से भी इन्द्राणी को एक पुत्री विधि पैदा हुई।  जिस को उसने अपने रास्ते की रूकावट न बनने के लिए देश से बाहर पढ़ने भेज दिया। कुछ समय बाद ही इस विवाह में भी झगडे और हाथापाई शुरू हो गयी और नतीजतन दोनों अलग हो गए।  अब एक बार फिर नए सिरे से इन्द्राणी को एक नए सहारे की तलाश थी जो उसे स्टार इंडिया के बड़े अधिकारी पीटर मुखर्जी के रूप में मिला।  उसने इस बार भी तरकीब से अपना अतीत छुपाया और अपने पूर्व के बच्चो को अपना भाई बहन बता कर पीटर से विवाह कर लिया। इस विवाह ने इन्द्राणी को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। लेकिन जिस बात ने ये सारा मामला बिगाड़ा वह थी पीटर के पूर्व विवाह से उत्पन्न पुत्र राहुल से शीना के प्रेम सम्बन्ध। इन्द्राणी जानती थी की रिश्ते में दोनों भाई बहन है। ये सारा मामला इतना उलझ गया कि इन्द्राणी को इस से निकलने के लिए एक ही तरकीब सही लगी , अपनी ही बेटी की हत्या। जो उसने अपने पूर्व पति संजीव के साथ मिल कर कर दी। 
                                इस पूरी घटना को गौर से देखें तो ये स्पष्ट होता है कि औरत किस हद तक गिर सकती है कि अपने फायदे के लिए कितने ही पुरुषों को इस्तेमाल करना पड़े तो वह कर भी सकती है।  स्त्री की मर्यादाओं को उसका गहना माना जाता है। इसी से उसकी शोभा है।  लेकिन अगर हम ही इसे गलत के लिए प्रयोग करेंगे तो वही गड़ेरिये वाली हालत हो जायेगी।  कि जब सही में शेर आया तो चिल्लाने पर भी कोई मदद को नहीं आया।  ये घटना हम औरतों को सचेत करती हैं कि महत्वाकांक्षा में ऊपर उठना अच्छा है पर उसके लिए अपने चरित्र को नीचे गिराना  अनुचित ही नहीं शर्मनाक है , जो की इन्द्राणी ने भरपूर किया।   

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