मनमुटाव की कँटीली झाड़ियाँ....🙇🗣️
मनमुटाव की कंटीली झाड़ियाँ ........... !
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छोटी छोटी सी बातें भी अब ,
महाभारत का कारण बन जाती हैं।
मन मुटाव के एक बीज से ,
कंटीली झाड़ियाँ सी उग जाती हैं।
किसी को कैसे खुश करें ,
ये गहन विचारणीय मुद्दा है।
कोशिश से भी क्या पाओगे ,
जब हर रिश्ते का चरित्र भद्दा है।
बर्दाश्त नहीं अब ऊँचापन ,
जब वह अपना नहीं तुम्हारा हो।
हर हाल में हम ही सुर्खरू रहें ,
अब बस यही हमारा नारा हो।
कब तक सब ऐसी बातों से ,
हर रिश्ते का खून बहायेंगे।
अपना अपना करने में ही ,
सब अपनों को भूल जाएंगे।
सिर्फ आत्मकेंद्रित हो कर अब ,
अपना अहम् बढ़ा लिया।
रिश्तों को उलझे जालों सा ,
यूँ बेवजह उलझा लिया।
इतना क्यों सोचें अपने बारे में ,
जो भाग्य में है वह आएगा।
दूसरों से लूट कर क्या कभी ,
अपना घर भर पायेगा ?
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छोटी छोटी सी बातें भी अब ,
महाभारत का कारण बन जाती हैं।
मन मुटाव के एक बीज से ,
कंटीली झाड़ियाँ सी उग जाती हैं।
किसी को कैसे खुश करें ,
ये गहन विचारणीय मुद्दा है।
कोशिश से भी क्या पाओगे ,
जब हर रिश्ते का चरित्र भद्दा है।
बर्दाश्त नहीं अब ऊँचापन ,
जब वह अपना नहीं तुम्हारा हो।
हर हाल में हम ही सुर्खरू रहें ,
अब बस यही हमारा नारा हो।
कब तक सब ऐसी बातों से ,
हर रिश्ते का खून बहायेंगे।
अपना अपना करने में ही ,
सब अपनों को भूल जाएंगे।
सिर्फ आत्मकेंद्रित हो कर अब ,
अपना अहम् बढ़ा लिया।
रिश्तों को उलझे जालों सा ,
यूँ बेवजह उलझा लिया।
इतना क्यों सोचें अपने बारे में ,
जो भाग्य में है वह आएगा।
दूसरों से लूट कर क्या कभी ,
अपना घर भर पायेगा ?
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