मस्ती में अभिभावक , गर्त में बच्चे …!

हर अभिभावक की ये ख्वाहिश होती है कि वह अपने बच्चे का दाखिला 
किसी नामी गिरामी विद्यालय में कराएँ।  जिस से अच्छे स्कूल के स्तर का बच्चे के विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़े और साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा भी बनी रहे । इस के लिए मैंने ये भी देखा है कि आज तो बड़े बड़े 
शहरों में बच्चे के जन्म के बाद ही विद्यालयों में नामांकन करवा दिया 
जाता है।  जिस  से उस समय सीट खाली होने या कतार में लग कर दाखिले के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़े।  विद्यालय के अच्छे होने पर हम अपने बच्चे की सारी जिम्मेेदारी स्कूल पर डाल देते हैं। हम ये सोचतें है कि एक बार किसी अच्छे विद्यालय की शरण में जा कर हमने अपने बच्चे को एक अच्छी राह पकड़ा दी है। अब उसके आगे पीछे सभी की जिमेदारी स्कूल की ही है। बच्चा सुबह के 7 से 3 बजे तक स्कूल में रहता है।  यानि मात्र 7 से 8 घंटे जबकि इससे कही ज्यादा समय वह अपने परिवार के साथ गुजरता है। अब ऐसे में यदि बच्चा कोई अप्रत्याशित हरकत करें तो क्या इस के लिए हमें स्कूल को कोसना चाहिए ? जोधपुर के एक नामी गिरामी स्कूल के एक हादसे से ये साबित होता है कि परिवार की गलती की सजा एक अच्छा स्कूल कैसे भुगतता है। डी पी एस  स्कूल की कक्षा नौवीं का एक छात्र कोल्ड ड्रिंक की बोतल में शराब भर कर लाता है और उसे कक्षा के सभी बच्चों को थोड़ा थोड़ा पिलाता है। कुछ समय पश्चात जब सभी बच्चे नशे में आ जाते हैं तब प्रबंधन को इस घटना का पता चला। जिस में से  एक बच्ची की तबियत ज्यादा ही ख़राब हो जाती है। ये घटना स्कूल के लिए के बड़ी शर्मिंदगी की बात साबित हुई।  पर मेरी नजर में इस घटना के लिए स्कूल नहीं बल्कि पूरी तरह अभिभावक जिम्मेदार हैं।अब कारणों पर गौर करें .......... 
                   
पहला कारण तो ये  कि बच्चा अपने घर में पीने पिलाने के चलन सेअच्छी 
तरह वाकिफ था और उस के लिए शराब एक सामान्य सी चीज थी जिसे 
वह अपने साथियों में अपना रौब बनाये रखने के लिए बाँट सकता था। 
दूसरा कारण हैं माता पिता की अनदेखी , किसी भी माता पिता को ये 
मालूम होना चाहिए कि उनका बच्चा स्कूल क्या ले कर जाता है क्या नहीं।  हमारे बच्चे अगर कोई अनदेखा पेंसिल रबर भी घर ले कर आते हैं तो सवाल पूछा जाता है कि ये कहाँ से लाये हो। ये पूछना लाज़मी है की कही वह चोरी कर के तो नहीं लाया। ये जागरूक अभिभावक होने का परिमाण है। परन्तु आज माओं को अपनी जिंदगी ,अपने फ़ोन कॉल्स , अपना व्हाट्सऐप , अपने मोबाइल की व्यस्तता से फुर्सत मिले तब वो अपने बच्चों की नियमित निगरानी कर पाएं। अब देखे तीसरा कारण , वह है बच्चों को अत्यधिक आजादी देना। बच्चे को उनकी उम्र के अनुसार आजादी की सीमा का निर्धारण किया जाना चाहिए।  हमने अपनी जिंदगी में खलल न बनाये रखने के लिए उन्हें उन चीजों की आजादी दे दी है जो उनकी उम्र से बहुत आगे हैं। चौथा कारण है , अभिभावकों का स्वयं का व्यव्हार और उदहारण , हम जो भी उदहारण पेश करेंगे बच्चा वही सीखेगा और करेगा। जब उस बच्चे से सामान्य रूप से पीते पिलाते परिवार को देखा तो उसे भी ये सामान्य ही लगा। इस लिए अगर हम बच्चे से कुछ अच्छे व्यव्हार की अपेक्षा करतें हैं तो हमें ही उसका उदाहरण बनना पड़ेगा। पांचवा और अंतिम कारण है , पैसा।  जो परिवार धन धान्य से भरे पुरे होते हैं उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता की उनकी संतान कहाँ, कितनी मात्र में ,और किस चीज पर पैसा उड़ा रही है। जबकि यही अत्यधिक और बेवजह खर्चने की आजादी और आधुनिकता उन्हें गर्त में गिरा देती है।  
                                        अब आप खुद ही  निर्णय लें की इन सभी 
कारणों में विद्यालय कहाँ दोषी हुआ। जिस स्कूल में लाखों में बच्चे पढ़तें हों क्या संभव है कि हर बच्चे के बैग टिफ़िन और पानी की बोतल की तलाशी प्रतिदिन ली जा सकें। और फिर दो पीरियड्स के बीच अध्यापकों की अदला बदली के बीच के समय में विद्यार्थी स्वतंत्र हो जाते है  ऐसे स्कूल वाले कैसे निगाह रख सकते हैं। मैं  नहीं मानती कि इस घटना  स्कूल कही से भी दोषी है जबकि उस स्कूल के प्रधानाचार्य का बड्डपन ही है कि इस के लिए उन्होंने अपनी शर्मिंदगी जाहिर की।  पर ये हमारी ड्यूटी है कि हम अपने बच्चे का ध्यान रखें और हमारे बच्चे की वजह से एक स्कूल शर्मिंदा न हो इसे कभी न होने दें। 

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