श्राप का बोझ : 🚫


हम कौन सी दुनिया में जी रहे हैं , हमारे लिए हमारी दुनिया की परिस्थितियाँ इतनी भयावह क्यों हैं.......? ? ? 








श्राप का बोझ........!
 

आप को क्या लगता है कि मुझे लेख लिखते समय क्या सिर्फ अच्छा - अच्छा ही सोच कर लिखना चाहिए। जिस को आप को पढ़ कर अच्छा लगे , मुझे लिख कर अच्छा लगे। पर हाय रे मैं किस्मत की मारी मैं एक औरत बेचारी ,……… कुछ अच्छा सोचूं और लिखूं कैसे जब अपने आस - पास इतनी गंदगी महसूस करती और देखती हूँ  तब सारा का सारा लिखने  का रोमांच धरा का धरा रह जाता है।  तब सिर्फ वेदना का अहसास होता है जो एक औरत या स्त्री के रूप में जन्म लेने पर शर्मिंदगी दिलाता हैं। इस के लिए आप को दो ज्वलंत  घटनाओं से रूबरू करवाती हूँ। मध्यप्रदेश के एक  जिले मन्दसौर में पिपलिया गाँव में एक महिला रेशमा दोपहर दो  बजे राह से गुजर रही थी तभी एक बच्ची के रोने की आवाज उसके कानों  में पड़ी।  दूर दूर नजर दौड़ाने पर भी कहीं कुछ नजर नहीं आ रहा था।  उसने गाँव वालों को खबर की।  सभी आये और मिल कर आस पास की  झाड़ियाँ खँगाली गयीं। तब एक राख के ढेर में एक पांच घंटे पहले जन्मी बच्ची जीवित मिली। उस के ऊपर बड़े बड़े पत्थर रख दिए थे जिस से वह दिखाई न दे और मर जाए। अभी उसकी आँखे भी नहीं खुली थी और वह सिसक रही थी। उसे ले कर सभी अस्पताल भागे।  डॉक्टर को दिखने पर उसने कहा की आधा घंटा भी यदि बच्ची वहाँ और रह जाती तो उसकी मृत्यु निश्चित थी पर कहते हैं न की जाको राखे साइयां ,मार सके न कोई। बच्ची बच गयी और उसने अपने जन्म की सार्थकता सिद्ध कर दी।  अब दूसरी घटने पर गौर करें।  जयपुर के पास के एक गाँव से एक विवाहित युगल अपने पड़ोस की एक बच्ची को ये कह कर उनके माता पिता से दूर लाता है की उसे अच्छी जगह काम दिलवा कर उस परिवार की स्थिति सुधार देंगे।  पिता मजदूरी करने वाला एक गरीब आदमी था माँ बीमार थी।  ये सोच कर उन्होंने रजामंदी दे दी। वह युगल उसे ले कर जयपुर आ गया और एक होटल में ठहरा दिया। अब आगे सुनिए जो भयावह तो है ही साथ ही पीड़ादायक भी है। उस लड़की के साथ पूरे चौबीस घंटे में 27 बार बलात्कार किया गया। अर्थात हर आधे पौने घंटे में एक बार शोषण। उस लड़की की पीड़ा अगर आप महसूस कर पा रहे हो तो सोचिये की उसके शरीर की क्या स्थिति हुई होगी। 
                                           ये स्थिति है हमारी आज की औरत की।  दयनीय और 
सोचनीय .......! क्या लगता है की कभी कोई बदलाव आएगा ? मुझे तो नहीं लगता। वैसे अगर देखें तो जिस माँ ने अपनी बच्ची को राख में दबाया उसकी या तो ये मजबूरी रही होगी की ये संतान बलात्कार का परिणाम होगी या उसे बेटी  होने का दुःख होगा।  अगर ये दोनों हो कारण देखें तो आज की स्थिति में औरत का जन्म लेने ही एक श्राप के सामान है। आखिर किस पर विश्वास करें और किस पर नहीं ? मैं अपने नजरिये से देखती हूँ तो उस माँ की ये गलती है कि उसने जन्म के बाद जीवित बच्ची को मरने के लिए छोड़ दिया।  पर अगर वह बच्ची समाज में रहती तो क्या समाज उसकी माँ को छोड़ता , या फिर इस बात की कौन गारंटी देता की कल उस बच्ची के साथ उसकी माँ की ही तरह कोई पुरुष खिलवाड़ नहीं करता। ऐसा मुझे लगता है कि उस माँ ने भी अपना कलेजा कितना कड़ा किया होगा जो अपनी बच्ची को यूँ मरने के लिए छोड़ा। अगर जन्म दे दो तो पूरी जिंदगी रखवाली करों या फिर उस मजदूर की बच्ची की तरह अपने शरीर की दुर्गति करवाने के लिए तैयार हो जाओ। आप को क्या लगता है कि हम जो भी औरतें घर  में सुरक्षित बैठी है वह वाकई सुरक्षित हैं ? आज चोरी करने के इरादे से घर में घुसे चोर भी चोरी करने के बाद घर की औरतों को इस्तेमाल करना नहीं भूलते। बाकियों के हाथ पैर बाँध कर परिवार जनों के सामने होने वाले इस हादसे से  क्या हम बच सकते हैं ? आज इस तरह की घटनाएं शहर में आम सी हो गयी हैं। कहाँ जाएँ और कैसे सुरक्षित रहे एक औरत अब तो ये भगवान ही बता सकता है। ……………?

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