उत्तरदायित्व एक जागरूक अभिभावक का .......! 
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आज मैं जिस विषय पर बात करने जा रहीं हूँ उस की आवश्यकता और 
उपयोगिता हर अभिभावक को है।  वह है अपने बच्चे को तात्कालिक परिस्थितियों से अवगत कराना। साथ ही उसे ये समझाना की वह कोई भी बात कभी भी अपने माता पिता को बिना डरे या झिझके बताये। उसके मन में ये विश्वास दिलाना कि उसकी बात को अच्छी तरह सुना जायेगा।  साथ ही बच्चे को ये भी सीखना होगा कि किसी के डर या दबाव में आ कर वह अपने माता पिता से यदि कोई बात छुपाता है तो इस में उसी का नुकसान है। ये एक मुश्किल काम है इस लिए कि बच्चे का बचपन उसके साथ रहता है और वह वैसे ही प्रतिक्रिया करेगा जो उसकी उम्र के अनुसार वाजिब है। उसका डर ,उसका मचलना ,उसका खेलना , उसका किसी घटना को सामान्य या अतिरेक स्वीकार करना , ये सब उसकी उम्र के अनुसार तय होता है।  क्योंकि उसकी सोच अपनी सीमाओं को नहीं जानती इस लिए वह उन चीजों को गलत भी नहीं मानता जो उस की उम्र के लिहाज से वाकई गलत हैं। 
                         आप को एक सामान्य सा किस्सा बताना चाहूंगी। मैंने 
अपनी सात वर्षीय बेटी को किसी पर परुष से दूर रहने या उसके अनपेक्षित व्यव्हार के बारे में समझा रही थी , तो उसका बचपने से भरा प्रश्न देखिये कि माँ पापा भी तो एक पुरुष है क्या उनसे भी दूर रहना है ? अब आप स्वयं देखें कि क्या इस बात का जवाब मेरे पास था या उसे ये कैसे समझाऊं की पिता ही एक मात्र ऐसे पुरुष हैं जिन के साथ वह पूर्णतया सुरक्षित हैं। ये ही बचपना है जिसे हम चाह कर भी बड़ा नहीं कर सकते। इस लिए सब से अच्छा उपाय ये है कि आप  को खुद से खुल कर रहने की सलाह दें जिस से वह अपनी हर बात ख सके।  भले ही कोई डरा या धमका कर चुप या शांत कराने की कोशिश करें पर बच्चा स्वतंत्र हो कर आप को सब से ज्यादा अपना समझ कर सब कुछ बता सके। 
  ऐसे अनेकों किस्से सुनने में आते हैं, ऐसा ही एक किस्सा उत्तर प्रदेश का 
है जहाँ एक 12 वर्षीय बच्ची 8 माह के गर्भ से है और वह खेलने और अस्पताल से छुट्टी दिलाने की जिद कर रही है।  माता पिता इस लिए कुछ भी ना कर पाये क्योंकि उस बच्ची ने डर के मारे 5 -6 माह तक कुछ भी नहीं बताया। देर से बताने पर अस्पताल ने गर्भ गिराने को मना कर दिया।  अब जन्म देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा। अब ये त्रासदी नहीं तो और क्या है ? इसी तरह के कई किस्से सुनने में आते है जिस में बच्चा शारीरिक रूप से शोषण को डर के मारे छुपा जाता है और बाद में जब उसकी तबियत ख़राब होती है तब अभिभावकों को पता चलता हैं। ये सत्य है और इसी का खामियाजा भुगतना पड़ता है। इस लिए अपने बच्चे को सब कुछ समझाने के बजाये ये सिखाये की वह आप को हर चीज बताने के लिए आगे आये। आप ही उसके सब से ज्यादा अपने हैं। 

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