शर्म बेच चुके मर्द .......!
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हाय ,शर्म कहाँ पर बेच चुके , 
जो मर्द हो तो कुछ शर्म करो। 
रक्षक न बन पाओ तो फिर ,
भक्षक बन कर न मर्म बनो। 
        कैसे रखें उसे तुम्हारे बीच , 
        जो फूल सी कोमल जान है। 
        एहसास कहीं तो होगा ये कि ,
       तेरी नियत से वो अनजान है। 
बख़्श दो अब नन्हियों को ,
वो कल किसी की माँ होंगी। 
जो आज कुचल कर रख दी गई ,
तो कल न अपने दरम्याँ होंगी। 
         लाओगे कहाँ से कोख वो ,
        जो तुम्हे जीवन दे जायेगी। 
        अपने आँचल के दूध से हर पल ,
        तुम पर अमृत बरसाएगी। 
अब तो सोचो की नन्हीं जान ,
कैसे ये दुःख सह पायेगी। 
छलनी अंतरात्मा का असह्य दर्द ,
कैसे माँ बाप को बतलाएगी। 
          वो बच्ची है , वो भोली है ,
          अभी समय नहीं कि ज्ञान दें । 
          तू मर्द अगर जन्मा है तो ,
          अपनी शख्सियत को मान दे। 
क्यों मन पर तेरा वश नहीं,
काबू में रखना हो तो सोच।  
तू जन्म कहाँ से लेता अगर ,
कोई मर्द कोख को लेता नोच। 
         भोलेपन की अब कदर करों ,
         मासूमियत हमेशा बनी रहे। 
        खेल कूद ,मस्ती में डूबे रहें। 
        खुशियों की कभी कमी न रहे। 
(उपरोक्त कविता हमारे ही जोधपुर शहर की एक पांच वर्षीया एल. के.जी की छात्रा के साथ उसके विद्यालय वाहन के ड्राइवर के द्वारा की गई हैवानियत और वहशियाना हादसे का दुःख है।) 









  

Comments

  1. ADBHUT, ek grinit soch rakhne wale purush ki mansikta ko darshane ka uttam pryas..

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  2. ADBHUT, ek grinit soch rakhne wale purush ki mansikta ko darshane ka uttam pryas..

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