संबंधों की सामाजिक सीमाएं..........!

आप अपने आस पास जिन भी संबंधों से घिरे रहते हैं वह सभी जब आप की सीमाओं को पहचानते और समझते होंगे तभी रिश्ता मजबूत चल सकता है। ये सीमाएं किसी भी तरह की हो सकती हैं जैसे आर्थिक , सामाजिक , और सांस्कृतिक।  अब इन सभी को विस्तार से समझिए। आर्थिक का अर्थ  है , जब भी कभी आप के किसी रिश्ते को मदद की जरूरत पड़े तो उसे ये अहसास होना चाहिए कि आप की उसे सहायता देने last limit क्या है। जिस से उसकी उम्मीद से ज्यादा की अपेक्षा आप के बीच के रिश्ते को ख़त्म न कर दे। अब दूसरा वह है सामाजिक , आप का हर रिश्ता एक नाम से बंधा होता है।  जैसे भाई बहन , पति पत्नी , माता पिता , सास ससुर , साली साला, बहन बहनोई ,जेठ जेठानी आदि कई सारे।  सब रिश्तों की अपनी एक मर्यादा होती है।  जैसे की देवर- भाभी और साली -जीजा के बीच हंसी मजाक का रिश्ता माना जाता है।  परन्तु यही मजाक अगर अश्लीलता की हद तक चला जाए तो रिश्ते की गरिमा पर आंच आने लगती है।  अपने रिश्ते की सामाजिक सीमा को याद रख कर उसे मजबूत और गरिमामय बनाया जा सकता है। अब तीसरा पहलु अर्थात सांस्कृतिक , हमारे समाज में संस्कारों के द्वारा कई बातें बचपन से ही हम में घोल दी जाती हैं। 
         हर रिश्ते से जुड़े संस्कार हमें परिवार के द्वारा सिखाये जाते रहते हैं और उन्हें हम ताउम्र निभाते हैं। जैसे कुछ रिश्ते पवित्रता से बंधें होते हैं। जैसे उदाहरण से समझिए एक भाई बहन का रिश्ता पवित्र रिश्ता है। हम भले ही बड़े हो जाए पर ये कभी नहीं भूलना चाहिए।  इस लिए कभी भी किसी परिस्थिति में बहन के प्रति गलत दुर्भावना नहीं आनी चाहिए। इसी प्रकार पिता पुत्री का रिश्ता भी एक पवित्र रिश्ता है। अक्सर देखा जाता है कि यदि माँ दूसरा विवाह कर लेती है तो उस व्यक्ति को पिता का पद प्राप्त होता है ऐसे में उस माँ की बच्ची को उसे अपनी संतान के रूप में देखना चाहिए। ऐसे बहुत से सम्बन्ध हैं जिस की गरिमा हम उन की पवित्रता और नियमों को मान कर बनाये रख सकते हैं। ये सब न मानने के कारण और गलत सोच रखने के कारण अच्छे से अच्छा रिश्ता टूट सकता है। हम सामाजिक प्राणी हैं।  हमें अपनी नियत सीमाओं और बंधनों की इज्जत करनी चाहिए। इसी से हम सब एक दूसरे से जुड़े हैं।आप सोच रहें होंगे कि मैं ये सब क्यों कह रही हूँ ? इस के पीछे कि वजह मेरा खुद का एक दुखद अनुभव है। जिस में मेरे रिश्ते के भाई ने नशे में धुत्त हो कर बहुत कुछ ऐसा कहा और मेरे लिए लिखा जिस से बने हुए अच्छे संबंधों में खटास आ गयी। इसी कारण मैंने सोचा कि रिश्तों की सीमायें जिस दिन हम समझना और निभाना शुरू कर देंगे उसी दिन हम एक अच्छे समाज के रूप में देखे जाने लगेंगे।  साथ ही नजदीकी संबंधों में होने वाले बलात्कार भी बंद हो जाएंगे। ये एक अच्छा कदम है।  जिसे हमे अपनी सोच और कार्यशैली में जरूर उतारना चाहिए। 

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