आजाद औरत की जंग ....!
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चलो एक बार ये सोचें ,
ये जहाँ हमसे है, तुमसे नहीं।
हम ही हैं जो रच रहें हैं ,
एक अंतहीन अरसे से,
इस युग का इतिहास।
जिसमें सिर्फ मैं ही नहीं,
तुम भी मनाते रहते हो ,
अपनी आजादी का जश्न।
पर शायद तुम भूल गए ,
कि मैंने अपनी कोख ,
कभी भी गिरवी नहीं रखी।
वर्ना तुम भी बन्धुआ पैदा होते।
और अपने जन्म पर सिसकते।
मैंने अपनी आजादी का एक हिस्सा ,
तुम्हे सौगात में दिया।
ये मेरा प्रेम है न की ,मेरी मजबूरी।
मैंने अपनी ख़ुशी को तुमसे,
बाँटा है न कि सस्ते में बेच दिया।
मैं एक औरत हूँ………।
एक भरा पूरा अस्तित्व,
जिंदगी जीने की चाह और ललक,
ने मेरे मन को भी ललचाया है।
और मैंने उसे हमेशा ,
तुमसे लड़ कर ही पाया है।
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चलो एक बार ये सोचें ,
ये जहाँ हमसे है, तुमसे नहीं।
हम ही हैं जो रच रहें हैं ,
एक अंतहीन अरसे से,
इस युग का इतिहास।
जिसमें सिर्फ मैं ही नहीं,
तुम भी मनाते रहते हो ,
अपनी आजादी का जश्न।
पर शायद तुम भूल गए ,
कि मैंने अपनी कोख ,
कभी भी गिरवी नहीं रखी।
वर्ना तुम भी बन्धुआ पैदा होते।
और अपने जन्म पर सिसकते।
मैंने अपनी आजादी का एक हिस्सा ,
तुम्हे सौगात में दिया।
ये मेरा प्रेम है न की ,मेरी मजबूरी।
मैंने अपनी ख़ुशी को तुमसे,
बाँटा है न कि सस्ते में बेच दिया।
मैं एक औरत हूँ………।
एक भरा पूरा अस्तित्व,
जिंदगी जीने की चाह और ललक,
ने मेरे मन को भी ललचाया है।
और मैंने उसे हमेशा ,
तुमसे लड़ कर ही पाया है।
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