सुख और दुःख ..........!
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सुख की परिभाषा क्या है ?
ये समझ नहीं पाई अब तक। 
जो पाते है , वह सुख है ,
या न पाने में ये दुःख है। 
पाया हुआ मनमाफिक हो,
और ख़ुशी उसी में बसती हो। 
ये सत्य नहीं कि नियति की,
कीमत इतनी सस्ती हो। 
यदि पाने में ही सुख छिपा ,
तो दुःख भी पाया जाता है। 
फिर क्यों कर के अवहेलना ,
उसको छिपाया जाता है। 
खोना यदि दुःख है तो क्यों ,
खुश हो प्रेम में सब खो कर। 
देने के प्रारब्ध में ही छिपी ,
फिर से दुःख की एक ठोकर। 
तय करने दो इस मन को ,
क्या दुःख सुख की रूपरेखा है। 
जो पाया है उसे समझ सकें ,
यही सब जीवन का लेखा है। 
सब पाने और खो जाने की ,
माया में लम्हे उलझे हैं। 
सिर्फ सोच सोच के अंतर से ,
परिस्थिति की गिरहें सुलझें हैं।
दुःख सुख आना जाना है ,
उसे रोको मत , बहने दो। 
मन को पक्का कर के रखो ,
एक सामान ही सहने दो। 
तुम सोचोगे तो रोओगे ,
दुःख घुटन में बदल जाएगा।
वर्ना आते और जाते में ,
ये अनुभव दे कर जाएगा।  
सुख एक भावना झूठी है ,
जो छल कर दुःख दे सकती है। 
क्षणिक मान कर नहीं जिया तो ,
मन का सुकून ले सकती है। 












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