बेटियां ...अनमोल 👰👧

बेटियां .......अनमोल !
( एक बेटी की अनकही दास्ताँ जहाँ 
बेटा होने की राह तकी जा रही हो )

जन्म लिया मैंने उस घर में , 
जहाँ , सभी वह रहते थे। 
जो बेटा - बेटा कहने में ,
लड़के का रस्ता तकते थे। 
मुझे याद नहीं कि मैंने कब ,
बेटी होने का सुख पाया हो। 
बेटे की चाहत में डूबे सब ने ,
प्यारी बेटी कह के बुलाया हो। 
माँ दुःख की गठरी बनी रही ,
बेटियां जो वंश में दे आई । 
भरी नहीं बगिया घर की ,
चंद फूल बेरंग से ले आयी। 
मैंने देखा, उनकी आँखों में ,
बस वंश बढ़ाने का सपना। 
पर समझ नहीं पाई मेरे बिन,
करेंगे पूरा कैसे स्वप्न अपना। 
एक नाम और एक पहचान तो,
मैं भी उनको दे सकती हूँ। 
एक परिवार और एक वंश की ,
जिम्मेदारियां ले सकती हूँ । 
आखिर कोई कोख तो चाहिए ही ,
दुनिया को आगे चलाने को । 
तो आओ हाथ बढ़ाएं हम सब,
अपनी बेटियों को अपनाने को ।  
  




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