
मैं हिन्दू हूँ पर ये मेरी पहचान नहीं है। मैं एक जीवित इंसान हूँ ,मेरे दिल की बनावट भी वैसी ही है जैसी की बाकि लोगों की , वही धड़कन , वही जज़्बात और सबसे बड़ी चीज है आस पास की तमाम गतिविधियों से प्रभावित होने का एक जैसा अहसास। हम सभी जिस भी माहौल में रहते हैं वह हमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूप से प्रभावित करता है। और यही कारण हैं कि हम उस परिस्थिति का आंकलन करने लगते हैं। इस आंकलन करने में वह सोच और माहौल सर्वोपरि हो जाता है जो हमारे इर्द गिर्द रहतें है। ऐसे में जातिगत भावनाओं का हावी होना कोई अप्रत्याशित वाकया नहीं है। मैं ये नहीं मानती कि किसी भी इंसान को अपनी जाति की खासियतें छोड़ कर दूसरों की खासियतें अपनाने पर ही शांति और अमन कायम करने में सफलता मिल सकती है । तमाम जातियों के अपने विश्वास और परम्पराएं होती हैं और इन्ही सब के एक साथ मिल कर रहने से एक पूर्ण राष्ट्र का निर्माण होता है।
पर मुद्दा ये नहीं कि तमाम जातियां अपनी जातिगत विशेषताओं के अनुसार जीवन जिए या कि राष्ट्रवादी हो कर ? सवाल ये है हम पर जातिगत विशेषता क्या इस कदर हावी चाहिए कि उस से हमारे आस पास का वह माहौल प्रभावित हो जिन के बीच हमें रोज रहना है , उठना बैठना है , खाना पीना है ? हम , हमारा मोहल्ला , हमारा समाज और हमारा राज्य विविध प्रकार के संयोजनों का परिणाम है। एक बहुत साधारण से उदाहरण से इसे समझे , हम खुद को सबसे अलग दिखाने के लिए रोज कुछ न कुछ प्रयत्न करते हैं। वह इस लिए कि हम सबके आकर्षण का केंद्र बने रहें। यदि सभी एक जैसे ,एक ही तरह के, एक सामान रहेंगे तो क्यों कोई एक दूसरे को देखने की जहमत उठाएगा ? इस लिए कुछ अलग होना बहुत ही जरूरी है। पर साथ ही ये भी आवश्यक है कि ध्यान रखा जाए कि हमारा ये अलगाव किसी दूसरे की खासियत को तो बाधित नहीं कर रहा है। जिंदगी तभी कारगर सिद्ध हो सकती है जब एक की खासियतें दूसरे के लिए बाधा नहीं बल्कि उत्साह और ख़ुशी का जरिया बनें।
अभी हाल ही में किसी वेबसाइट पर प्रकाशित एक चित्र ने जातिगत विशेषताओं के नाम पर फ़ैलाने वाले द्वेष से ये भ्रम तोड़ दिया कि विभिन्न जातियाँ अपनी अपनी विशेषताओं का प्रयोग सर्व सधारण से जुड़े रहने के लिए करती हैं। आज ये हमारे बीच राजनितिक धंधे के रूप में इस लिए भी फ़ैल रहा है क्योंकि नेता इस के पीछे से अपनी कुर्सी के पाए मजबूत करने में लगे हुए हैं। हमारी ही विशेषताओं को , हमारी कमजोरी बना कर , हमारे अपने के खिलाफ करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं बस कुछ भड़काऊ भाषणों की फेहरिस्त आवश्यक है। जो ये लोग बखूबी जानते हैं। इस लिए आवश्यक है कि समय रहते हम चेत जाएँ और अपनी जातिगत खासियतों को इस्तेमाल का जरिया बना कर उस माहौल को न बिगाड़े जिन के बीच हमें जीवन भर रहना है।
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