छोटी छोटी चंद पंक्तियों में व्यक्त भावनाएँ...!
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किसी के मन की व्यथा ,
तुम तब तक न जान पाओगे ।
जब तक कि उस मन की ,
गहराइयों में ना जाओगे ।
डूबकर उस की कल्पनाओ
में ना समाओगे ।
और फिर समा कर उसे,
अपना ना बनाओगे ।
अपना बना कर उसको ,
करीब ना लाओगे ।
करीब ला कर उसकी ,
कमियों को ना भुलाओगे
कमियाँ भुला कर गले से ,
ना लगाओगे ।
गले से लगा कर उसके सारे ,
दर्द ना अपनाओगे ।

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कहीं और दिल लगाने की बात करते हो ,
मुझे इस तरह आजमाने की बात करते हो ।
मेरी दुनिया उजाड़ कर क्यूँ इस तरह ,
मुस्कुराने रहने की बात करते हो ।
मुझे तो पहचान सके ना अब तलक ,
फिर भी जमाने की बात करते हो ।
सब्ज बाग दिखाने का वादा करके ,
खुद ही मुकर जाने की बात करते हो ।
भरोसे के काबिल नहीं है तुम्हारी फितरत ,
फिर भी उम्मीद बनाये रखने की बात करते हो ।
एक बार और सही,धोखा खा के देख ही लें ,
आज फिर से विश्वास कमाने की बात करते हो ।
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