अजीब सी है ये दुनिया यारों ,
जब चलना नहीं जानते थे तब.....
तब सहारा दे कर गिरने से बचाते थे।
आज जब चलना सीख गए ,
तो हर कोई गिराने की चालें चलता है।
हम भी अजीब से हैं यारों ,
जो ये ही भूल जातें हैं कि.......,
आसमान पर ठिकाने नहीं हुआ करते।
और जमीं से जुड़े रहने की ख्वाहिश में ,
अब तो कहीं के भी न रहे हम।
नहीं समझ पाए हम ये कि ,
ये शहर उन जालिमों का है जी....,
जो सीने से लग के प्यार दिखाते हैं ,
और चुपके से दिल निकाल लेते हैं।
समझना जरूरी है क्योंकि ,
रूठी हुई खामोशियों से , बेहतर हैं.......,
वो बोलती हुई तमाम शिकायतें ,
जो व्यतिरेक को सहमति बनाती हैं।
ये आसमानों के बादल भी ,
क्या कभी इतना बरस पाएंगे ?
नफ़रतें धुल जाएँ और सैलाब आये ,
शहर मोहब्बतों में डूब जाए।
जब चलना नहीं जानते थे तब.....
तब सहारा दे कर गिरने से बचाते थे।
आज जब चलना सीख गए ,
तो हर कोई गिराने की चालें चलता है।
हम भी अजीब से हैं यारों ,
जो ये ही भूल जातें हैं कि.......,
आसमान पर ठिकाने नहीं हुआ करते।
और जमीं से जुड़े रहने की ख्वाहिश में ,
अब तो कहीं के भी न रहे हम।
नहीं समझ पाए हम ये कि ,
ये शहर उन जालिमों का है जी....,
जो सीने से लग के प्यार दिखाते हैं ,
और चुपके से दिल निकाल लेते हैं।
समझना जरूरी है क्योंकि ,
रूठी हुई खामोशियों से , बेहतर हैं.......,
वो बोलती हुई तमाम शिकायतें ,
जो व्यतिरेक को सहमति बनाती हैं।
ये आसमानों के बादल भी ,
क्या कभी इतना बरस पाएंगे ?
नफ़रतें धुल जाएँ और सैलाब आये ,
शहर मोहब्बतों में डूब जाए।
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