दोस्त..... !
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कुछ दोस्त पुराने याद आये ,
वो गुजरे ज़माने याद आये। 
जब भटके थे यूँ मस्त बन के,
वो रंगीन फ़साने याद आये।
          क्या दिन थे वो बेशर्मी के,
          जब परवाह नहीं थी तन मन में। 
          संग साथ रहने और सोने के ,
          मदमस्त दिन और रात भाये। 
घुमना फिरना जंचे था बस ,
जो उम्र थी मजे उड़ाने की। 
हर दोस्त ही एक पैगाम सा था,
जो खुशियों की सौगात लाये। 
         बंधन में रहना भूल जाते ,
         जो साथ दोस्त का साथ होता। 
         फिरे , मटरगश्ती में यूँ ही ,
         जब-तब भटके,धक्के खाये। 
आज भी दोस्ती जिन्दा है ,
पर समय नहीं है उस जैसा। 
जिम्मेदारियों का जामा उतार कर ,                              
कौन भटकने फिर जा पाए।  




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