रिश्तों की मांग और पूर्ति…………!
================================================
अर्थशास्त्र का एक नियम है की यदि बाजार में मांग और पूर्ति का चक्र बराबर रहेगा तो वस्तु के दाम नहीं बढ़ेंगे। अर्थात कोई भी वस्तु की जितनी मांग हो उसी के अनुसार उत्पादन से पूर्ति चक्र का क्रम चलता रहेगा। यदि उस वस्तु की कमी हुई तो बाजार उस का लाभ उठाने के लिए उसका मूल्य बढ़ा सकता है। ये नियम जितना बाजार पर लागू होता है उतना ही हमारे पारिवारिक जीवन पर भी। वह कैसे ? इसे इस तरह से समझें। आप लोगों के बीच भिन्न भिन्न रिश्तों में बंधे रह रहें हैं। और हर रिश्ते की अपनी एक अलग मांग है उसकी पूर्ति आप को अपने व्यव्हार आचार और शिष्टाचार से करनी है। और उसी के बदले में आप वह सब पाते है जो दूसरे से उम्मीद करते हैं। इस अर्थशास्त्र के नियम के ही जरिये परिवार एकजुट हो कर बंधा रह सकता है। व्यक्ति जितना भी प्रेम या किया हुआ किसी से पाता है उसे बदले में उतना ही चुकाना भी पड़ता है। तभी बराबर का सौदा होता है। एक का भी ऊपर नीचे होना रिश्तें में एक ये प्रश्न खड़ा कर देता है कि मैंने तो इतना किया , तुमने क्या किया ? आप जितना धन खर्च करते हो उतने ही मूल्य की वस्तु मिलती है। उसी अनुसार आप के प्रेम के बदली उतना ही प्रेम मिलना रिश्ते को मजबूत करता है।
                                   इस नियम को एक और तरीके से समझें कि पूर्ति के माध्यम स्वयं आप हैं। आप ही अपने व्यव्हार के जरिये इस पूर्ति को निरंतर रख सकते हैं। आप ही सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रयास करते रहेंगे।  व्यव्हार का नरम या गरम होना परिस्थिति पर निर्भर है पर उसका नियंत्रण खुद के हाथ में होता है। उसके नियंत्रण से संभव है की परिस्थिति की प्रतिकूलता भी समाप्त हो जाए और वह एक सकारात्मक रूप में प्रस्तुत होए। यदि कोई आप के प्रति जागरूक है तो ये आवश्यक है कि  आप भी उसके प्रति निष्ठावान रहें तभी रिश्तें समान्तर चल सकेंगे। आज के भौतिकवादी युग में तो रिश्तें भी पैसे खर्च करने के अनुसार घटते या बढ़ते हैं। उसने इतने खर्च किये तो मुझे भी इतने खर्च  होंगे यही सत्य है। अर्थात इस नियम के बीच में  धन ने जगह बना कर इसे और जटिल कर दिया है। क्योंकि आर्थिक स्थिति के अनुसार खर्च करने की मजबूरी ने इस नियम को प्रभावित किया है। यदि बराबरी का खर्च नहीं हुआ तो मांग और पूर्ति का चक्र टुटा और भाव बढ़े। चाहे वह व्यवहारिक भाव ही क्यों न हो। इस नियम की पूर्ण पालना तभी संभव है जब आप आर्थिक स्तर पर बराबरी वालों से जुड़े हों। और ये आज की परिस्थिति में संभव नहीं। इस लिए इसे नियंत्रित करने के लिए स्वयं आप को अपने व्यव्हार के जरिये उस जगह को भरना होगा। कम करना एक बड़ी समस्या नहीं बल्कि उस कम की कमी को अपने व्यव्हार से भरना एक बड़ी समस्या है। यदि आप इस में कुशल हो गए तो समझ ले कि आप इस नियम को जान गए और अब व्यवहारिक  जीवन में रिश्तों के भाव वही रहेंगे।  
  

Comments