यही तो सब कहते हैं कि
इंसान में रब बसता है।
पर कोई ये बताये कि ,
तो इंसान कहाँ बसता है।
कौन हाथ दे संभलने को ,
सब अपने में मशगूल हैं।
खुद ही गिर कर संभलो ,
यही जिंदगी का उसूल है।
उधारी की बात चली है तो ,
चलो वो दुकान खोजते हैं।
आज उधार रख गुजरा वक्त दे,
कुछ ऐसा नया धंधा सोचते हैं।
सबकी खामोशी में दबा है,
उनके ऐब और हुनर का राज।
गुनाहों का पता गुफ्तगू देगी,
परदे सभी हटाएगी आज।
दिलों को परखो फिर एक बार,
जो नहीं है नेकियों का नवाब,
फिर क्यों मानते हो उसकी बात ,
जो कहता फिरे जमाना है ख़राब ।
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