हम सभी जन्म से ही किसी न किसी धर्म से जुड़ जातें हैं। ये किसी परिवार में जन्म लेने भर से निर्धारित हो जाता है। इसमें चुनाव करने या चुनाव करवाए जाने सम्बन्धी कोई नियम लागू नहीं होता। न तो परिवार हमें चुनता है , न ही हम परिवार का चुनाव कर सकते हैं। लिंग,जाति, धर्म, यह सब जन्म के आधार पर ही निश्चित हो जातें हैं। उम्र के एक पड़ाव तक हम इन वर्गीकरणों के जाल में नहीं उलझते। क्योंकि तब ये सारा गणित मस्तिष्क की सोच और समझ से परे होता है। 
                                                      मानव जीवन पाने का सुख उसी समय पूरा उठाया जा सकता है जबकि हम व्यक्ति विशेष होने से ऊपर उठकर अपने शरीर के सभी अंगों को उनके सर्वोत्तम उपयोज्यता अर्थात सार्थकता के लिए प्रयोग करें। पारिवारिक दबाव या जुड़ाव के चलते धर्म ,जाति और लिंग मानव को उसकी उपादेयता प्रदान करने में बाधक बने तो यह एक पुरे कुल या वंश की दुर्गति का संकेत है। अतः हम सभी को अपने प्रयासों में यह बनाये रखना चाहिए कि धर्म जाति या लिंग हमारी सहृदयता और मानवीय सवेदनाओं को न कुचल पाएं। साथ ही हमारे कर्मों के सद्भाव से परिवार को भी हमारे उनके यहाँ जन्म लेने पर गर्व की अनुभूति हो।

Comments

Post a Comment