खोये सुकून की तलाश ........!
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शब्द नहीं जो व्यक्त करूं ,
कब कहाँ खो गया मन का चैन।
बहुत तलाशा मिला नहीं ,
रोई और जागी दिन और रैन।
उसे चुरा के कोई ले गया,
या मैंने खुद ही खोया है।
काँटों का जंगल इर्द गिर्द ,
किसने और कैसे बोया है।
अब बैचनी के आलम में ,
वो पल नहीं मिलता है कभी।
खुद से खुद का मिलना हो,
वो दौर नहीं चलता है कभी।
भीड़ भरी है आस पास में ,
फिर भी खाली खाली सा है।
कंटीली झाड़ियों से ढंका मन ,
कोई बाग़ बिन माली सा है।
हम खुद को ही नहीं जानते ,
तो दुनिया को क्या पहचानेंगे।
पहले आत्म परिचय से रूबरू हो ,
तब सुकून से चैन तलाशेंगे।
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