बचपन  !
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फिर से जी लें बचपन को ,
कुछ ऐसी ही चाहत जागी है। 
भोलेपन की दुनिया में बसने की,
धुन , मन में काहे को लागी है ?(1)
           क्यों फिर से छोटे बन कर के,
           लड़कपन करना चाहे हम। 
           बड़ों की डाँट से सीख कर भी  ,
           गलतीयां वही दोहराएं हम। (2)
क्यों मन की चिंता फेंक कहीं ,
यूँ खोएं रहें बस मस्ती में।  
हमउम्र अजनबी करीब आ जायें, 
अपनी दोस्ती की बस्ती में।(3)
            अब ऊब चुके हैं कुटिलता से ,
            फायदे की सौदेबाजीयों से। 
            रिश्तों की गरिमा का वजूद ,
            मिटा , धोखे की कलाबाजियों से। (4)
सूरज ढलने के साथ ख़त्म हो ,
झगड़ा दिन और शाम का। 
नयी सुबह फिर लाये मुस्कान,
खुशनुमा दोस्ती  के नाम का।(5)  


                     









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