
आज कल की संतानों को क्या कहना उचित होगा ..... "जीन युग की अगवानी करती संतानें".
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दुनिया भर के तमाम बच्चे आज विज्ञान के नाम पर कल्पनाओं की उड़ान भरते रहतें हैं। वो वह सभी कुछ जानने समझने का प्रयास करते हैं जो उनकी उम्र ,ज्ञान और बुद्धि के अनुसार उचित है। परन्तु आज से कई वर्षों पहले 1985 में अमेरिका के 5000 चुने हुए स्कूली छात्रों को हारबर कोल्ड स्प्रिंग लेबोरेटरी में एक लर्निंग प्रोग्राम के तहत DNA बायो टेक्नोलॉजी की जानकारी कुछ यूँ दी गयी कि उस समय और उनकी उम्र से पहले वह बच्चे DNA, और Restriction enzyme , Jell electroforsis , और Cloning जैसे भारी भरकम शब्दों और उसके अर्थों के साथ गेंद की तरह खेल रहे थे। जो आजकल के जेनेटिक इंजीनियरों के सूक्ष्मतम उपकरण हैं। लर्निंग सेण्टर के अध्यक्ष डॉ . जेम्स वाट्सन थे जो 1962 में चिकित्सा और शरीर विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हो चुके थे। उन्होंने 1953 में एक वैज्ञानिक फ्रांसिस क्रीक के साथ मिल कर एक प्रयोग के द्वारा "जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों के घटक " का पता लगाया था। उनके अनुसार आम जनता को DNA की सरंचना से परिचित कराना क्यों आवश्यक हैं क्योंकि यह शरीर से जुडी तमाम जानकारियों का आधारभूत ढांचा है।
लेकिन क्या कार्टून देखने , कॉमिक पढ़ने , खेल कूद में उलझे रहने की उम्र में मक्का की वंशानुगतता , मक्खी में जैविक चक्र और परिवर्तन , DNA का ढांचा ,जीनों की काट छांट जैसे कामों खपाना सही था क्या ? पर जेम्स के अनुसार दिमाग को हमेशा चुनौती मिलती रहनी चाहिए। वैज्ञानिक साक्षरता पर जोर देने वाले उम्र को ज्ञान प्राप्त करने में बाधक नहीं मानते। जब उस समय 12 साल की बच्चीयां एलिसन और लिंडी ये मान सकती सकती हैं कि ये हमारे भविष्य का एक अहम् हिस्सा है और विज्ञान रूचि और ज्ञान दोनों की पूर्ति करता है। तो आज के बच्चे क्यों न समय से आगे चलने का प्रयास करेंगे।

तर्क इस बात पर नहीं है कि आजकल के बच्चें यह तमाम ज्ञान कब अर्जित कर रहे हैं , मुद्दा ये हैं बच्चें उस ज्ञान को किस रूप में और किस जरिये से अर्जित कर रहें हैं। क्योंकि पानी तो नदी , और समुद्र दोनों में ही होता है परन्तु अगर पीने योग्य पानी की तलाश हो तो नदी का पानी ही उपयुक्त होगा । इसी तरह ज्ञान जब तक सही माध्यम से नहीं मिलेगा उसकी उपयोगिता खतम हो जाती है और वह भयावह रूप में भी सामने आ सकता हैं। हमें आज के बच्चों के साथ साथ ही उनके ज्ञान के स्रोत को भी परखते रहना चाहिए जिससे वो चाहे विज्ञान हो या सामान्य ज्ञान वह उनके जीवनोपयोगी बन कर मार्ग प्रदर्शित करें।
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