दस्तक की अनदेखी  !
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समाचार पत्र पढ़ते समय न जाने क्यों उन अप्रत्याशित ख़बरों  पर नजर पहले चली जाती हैं जिन्हे हम एक सभ्य समाज का हिस्सा रहते हुए अंगीकार नहीं करते। वह तमाम घटनाएं जो जीवन बदलने का सामर्थ्य रखती हैं। आज ही के समाचार पत्र में पढ़ा , एक नव विवाहित युगल जिस का विवाह एक माह पहले ही हुआ। उस युगल के पति ने पत्नी की गला रेत कर हत्या कर दी।  पत्नी सुन्दर थी , पढ़ी लिखी थी , अच्छे परिवार से ताल्लुक रखती थी और सबसे बड़ी बात उस युवक ने पसंद से ही विवाह किया था। फिर यह क्यों हुआ इस के पीछे का कारण आज की टेक्नोलॉजी से जुड़ी व्यस्तता हैं। जो रिश्तों के बीच इस कदर आ गयी है कि उसके द्वारा बनाई दरारों में शक़ , विद्रोह , धोखा , गुप्तता , और न जाने किन - किन भावनाओं और सम्भाव्यता ने घर बना लिया है। सबसे बड़ी बात कि इन भावनाओं के नाग के फन उठाने पर व्यक्ति सिर्फ अपने ही मन की सुनता है। ऐसे में दुर्घटना  का प्रतिशत सौ फीसदी बढ़ जाता है। 
                                मामला यूँ था कि पत्नी अक्सर फ़ोन पर ही व्यस्त रहती और बातें किया करती। पति पूछता तो टाल देती कि यूँ ही किसी से बात कर रही थी। पति ने एक दो बार उसकी अनुपस्थिति में फ़ोन चेक करने की भी कोशिश की परन्तु पॉसवर्ड लॉकिंग होने के कारण सफल नहीं हुआ।  पति के मन में शक़ का नाग फन उठा रहा था। परन्तु पत्नी ने इसे शांत करने का कोई प्रयास नहीं किया। ऐसा तो नहीं कि पत्नी को अपने पति की बातों और गतिविधियों से बदलती विचारधारों का आभास न हुआ हो। यह  संभावित दुर्घटना को रोकने की प्रथम सीढ़ी हैं। क्राइम पेट्रोल नामक एक सीरियल में यह हर बार कहा जाता है कि जुर्म होने से पहले दस्तक जरूर देता है।  उस दस्तक को पहचान कर उसकी वही पर रोकथाम कर लेने से आगे को होने वाली और बड़ी घटनाओं को रोका जा सकता है। नए विवाह में पहले एक दूसरे का विश्वास जीतना आवश्यक होता है। जो कि यहाँ नहीं हो पाया। एक दूसरे को समय दे कर अपने बारे में यदि बता सको तो बेहतर , न भी बताया तो कोशिश ये ही होनी चाहिए कि कुछ ऐसा न किया जाएँ जिस से एक दूसरे की विश्वसनीयता की डोर चटकने लगे। दो अलग अलग विचारधारा और प्रवित्ति के लोग एक साथ रहकर परिवार तब बनातें हैं जब वह अपनी रुचियाँ और जीने का तरीके में सामंजस्य बना कर चलने लगते हैं। 
                                                                              इस घटना में पत्नी को यह आभास करना चाहिए था कि अब पति उसकी प्राथमिकता है। जो जीवन वह छोड़ कर आ चुकी उससे अलग होने के लिए उसे पति को समय देना शुरू करना चाहिए था। अपनी नयी गृहस्थी को दोनों के अनुसार सवारने के लिए साथ मिलकर प्रयास करना चाहिए था।  ये भी सत्य है कि पति ने पहले कई बार इस के लिए टोका भी होगा , यही वो दस्तक रहीं होंगी जो पत्नी ने नहीं सुनी। इस का परिणाम उसे अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। पति इस सन्दर्भ में गलत है कि इतनी जल्दी विश्वास खोने जैसी कोई बात नहीं थी। पत्नी अब जीवन भर उसी के साथ रहने वाली थी।  प्यार से धीरे धीरे उसे अपने समीप ला कर उसकी मनोभावनाओं को अपनी ओर मोड़ने का प्रयास करना चाहिए था। किसी भी नए रिश्ते को पनपने में वक्त लगता है और ये वक्त दोनों ने एक दूसरे को ना देकर बड़ी कीमत चुकाई।     
                                 

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