परिष्कृत व्यक्तिव........ !
*****************************

हम जो भी जीवन रोज जीतें हैं एक समय के बाद वो हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है। जैसे नियत समय पर जागना , अपनी दैनिक दिनचर्या अपनी सुविधा के अनुसार निपटाना ,स्कूल दफ्तर , या घरेलु कामों के लिए खुद को तैयार करना , वह पहुँच कर उसी कामों को रोज करना जो हमारे लिए प्रतिबंधित हैं , फिर शाम ढले घर की पर रवानगी और फिर कुछ देर परिवार के साथ उनके लिए समय बिता कर भोजन फिर निंद्रा।  अमूमन सभी इसी  दिनचर्या का अनुसरण करते हैं। अब अगर इस दिनचर्या में से ही व्यक्तित्व निखार की बात की जाए तो क्या ये संभव है ? जी हाँ ये संभव है।  कि हम जो भी करते हो वह इस तरह करें की वह हमारी एक अच्छी पहचान के रूप में जानी जाए न की एक बुरी आदत के रूप में।  इसे एक सामान्य से उदहारण से समझा जाए , जैसे कि अक्सर लोगों की टॉयलेट्स में देर तक बैठने की आदत  बन जाती है। वहां किताबें पढ़ते हुए , गुनगुनाते हुए समय गुजारना उन्हें अच्छा लगता है।  पर ये संभव है कि ये आदत कुछ अन्य लोगो की तकलीफ का कारण हो।  सुबह सभी को जल्दी रहती है ऐसे में किसी एक का ज्यादा समय टॉयलेट्स इस्तेमाल करना दूसरे को प्रतीक्षा करवाता है। ये अपनी अपनी सुविधानुसार ,एक बहस का मुद्दा बन सकता है। तो ये माना  जा सकता है कि ये छोटी सी आदत परेशानी का सबब बनी।  
                                    इसी तरह हम में तमाम ऐसे गुण अवगुण हैं जो हमारी व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं। अक्सर चार दोस्तों के एक साथ मिलने पर ये कहते हुए अक्सर पाया जा सकता है  ये तो फलाने की आदत है ये तो उसकी पुरानी आदत है।  ऐसे में हमारा ये फ़र्ज़ बनता है कि हम अपने व्यक्तित्व की तमाम आदतों का मूल्यांकन  इस आधार पर करें कि वह हमारी पहचान कहीं गलत व्यक्ति के रूप में तो नहीं बना रही। अगर ये निर्धारण हमें एक सफल और सजग व्यक्ति के रूप में स्थापित करता हो तो ये हमारे व्यवहारिकता की उपलब्द्धि है।  जिस तरह पीतल के बर्तन को कड़वाहट से बचाने के लिए समय समय पर कलई करवाना जरूरी होता है।  जिससे चमक और मिठास बनी रहती है उसी तरह जरूरी है कि समय समय पर हम सभी अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए परिमार्जित करते रहें और सबके प्रिय बने रहें। 

Comments