बंद किताबों सरीखे........ !
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बंद किताबों की तरह हम भी ,
बन जाएँ तो क्या बात हो। 
अंदर सब कुछ भरा हो पर ,
जब खोलोगे , तभी साथ हो। (1)
        बिन महसूस किये कभी भी ,
        कुछ भी व्यक्त ना करें हम। 
        मन की मन में ही रखें पर , 
        तुम्हारी उपेक्षाओं से बचे हम। (2)
क्या फायदा बिन प्रतिक्रिया ,
कुछ भी सुनने और कहने का। 
जहाँ अभिव्यक्ति रस्ता तलाशे ,
सुगमता से बहते रहने का। (3)
       वह ज्ञान भी तो फज़ूल है जो ,
       अनभिज्ञता का प्रतिफल हो।
       संयोग और स्वीकार्यता संग हो ,
        तभी ग्राह्यता भी सफल हो। (4)
किताबों सरीखें हम खुद में ही ,
समेट ले सारी दुनिया अपने में। 
खुद ही अपने पन्नों को फड़फड़ाते ,
जीतें रहें असंख्य सपने में। (5)








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