आस्तीन के नाग ही डसने को तैयार........! 
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जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो ऐसे में किस से आस लगाई जा सकती है। एक सच्ची घटना से  आप सभी को रूबरू करवाना चाहती हूँ। बिहार का एक जिला दन्तेवाड़ा में एक स्कूल में कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें सेना के जवानों को बच्चियों से राखी बंधवाने के लिए बुलाया गया। करीब 160 जवान इस में शामिल हुए । इसी कार्यक्रम के दौरान जब कुछ बच्चियां पीछे की तरफ बने शौचालय में गयी तो पीछे पीछे कुछ जवान भी चले गए और शौचालय में घुस  बच्चियों के साथ आपत्तिजनक हरकतें कीं। बच्चियों ने जब यह बात सार्वजानिक की तो सभी ने इसे सच मानने से इंकार किया। परन्तु फिर बच्चियों के अंदरूनी अंगों की जांच से इस बात की पुष्टि हुई की उनके स्तनों और शरीर के निचले  हिस्से में नाखूनों की खुरच और जबरदस्ती दबाव के निशान थे। बच्चियों के कपड़ें भी अस्त व्यस्त से दिख रहे थे । कुछ बच्चियां तो दहशत के मारे फ़फक रही थीं । आखिर क्या साबित किया प्रशासन ने ऐसे कार्यक्रम को आयोजित कर के ? रक्षाबंधन के नाम पर दैहिक शोषण ? 
       धन्य है वह सैनिक ,जो अपने पद और सम्मान की गरिमा गिरा कर इस तरह का काम करते हैं। कम से कम उस शपथ की तो लाज रखनी  चाहिए। जो उन्होंने ये नौकरी में लगते समय खाई थी। अगर वो भी यूँ ही बेमतलब सी है तो कम से कम उन बच्चियों की उम्र का लिहाज तो किया जाना चाहिए। अगर ये भी वजह चिंतन योग्य नहीं तो ये तो सोचनीय है की उन्हें किस मौके पर बुलाया गया था।  भारतीय  होने के नाते उन्हें रक्षाबंधन का महत्व ना पता हो ये सही नहीं होगा। व्यक्ति आजकल सिर्फ पुरुष ही बन कर रह गया है। उसके अंदर से वह सभी रिश्ते खो गए है जो एक पुल्लिंग  द्वारा इस समाज को मिलते हैं। उन सभी रिश्तों पर उसकी व्यक्तिगत भावनाएं इस कदर हावी हो गयी हैं कि उनकी मान मर्यादा सभी कुछ नगण्य सा हो गया है। 
                             नव नियुक्त सैनिक जिनके जोश की जरूरत सामजिक कुरितियों को सँभालने और रोकने के लिए होती है वह अपने जोश और क्षमता का इस तरह उपयोग करे , यह शर्मनाक ही नहीं घृणित है। अब किस तरह बेटी वाले अपने परिवार की सुरक्षा को महफूज़ माने ।

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