कानून की बंदिशें.............!
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ये प्रश्न हमेशा से मेरे लिए एक अचम्भा सा ही रहेगा कि आखिर जो कानून हमारी सुविधाओं के लिए बनाया गया है ,वही हमारी परेशानियाँ बढ़ाने के लिए जिम्मेदार क्यों हो जाता है। और फिर यदि कोई नियम या तहरीर समयनुसार प्रासंगिक नहीं है तो उसे बदलने में इतनी जद्दोजहद क्यों होती है ? अभी हाल ही में एक समाचार पढ़ा कि 12 से 16 सप्ताह तक का ही गर्भ गिराने की कानूनी स्वीकृति है । इस के बाद कोई भी चिकित्सक वैध रूप से इसे अंजाम नही दे सकता ।
चिकित्सकीय कारणों से मानें तो इसे वाजिब ठहराया जा सकता है । क्योंकि उस समय तक माँ की जान को खतरे का प्रतिशत 10 % से नीचे का होता है । जबकि गर्भ के बढने पर यही प्रतिशत बढ़ कर 40 % से 50 % तक पहुंच जाता है । परंतु इसे बलात्कार की दशा में दूसरे सन्दर्भ में लिया जाना आवश्यक है । सबसे पहले यदि दुर्घटनावश किसी छोटी बच्ची के साथ बलात्कार हुआ हो तो उसे दो या तीन माह तो समझ ही नही आता कि उसके साथ क्या हुआ है या उसे कुछ हुआ अप्रत्याशित हुआ है । जब तक उसे परिस्थिति का भान होता है तब तक गर्भपात के समय निकल जाता है। अब उसके सामने उस अनचाहे गर्भ को ढोने की चुनौती का सामना करना पड़ता है । इसे कानूनी प्रक्रिया में उलझाना उचित नही है , क्योंकि ऐसे हम एक अवैध संतान को भी जन्म दे रहें है साथ ही उस पीडित को लंबे समय तक उस त्रासदी में फंसे रहने को भी बाध्य कर रहे हैं । एक समय के बाद परिवार के प्यार और सहयोग से पीड़ित बलात्कार भूल सकती है पर उस के परिणाम के साथ लंबे समय का दर्द नही भुलाया जा सकता है । यही कारण है कि इस मामले में कानून से ज्यादा सामाजिक पहलु को प्राथमिकता देनी चहिये। अगर ऑपरेशन के जरिये भी उस अवांछनीय संतान से मुक्ति मिल सके तो एक लम्बे समय की पीड़ा की त्रासदी भुलाई जा सकती है।
जीवन में निरंतर जिंदगी जीते रहने से भी ज्यादा जरूरी है उसे सुकून से जीना। जो कि बलात्कार के बाद मुश्किल से ही संभव हो पाता है। ऐसे में उसके साथ कानूनी प्रक्रिया के दावं पेंच लगाना उसके घावों पर नमक छिड़कने जैसा हो जाता है।
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ये प्रश्न हमेशा से मेरे लिए एक अचम्भा सा ही रहेगा कि आखिर जो कानून हमारी सुविधाओं के लिए बनाया गया है ,वही हमारी परेशानियाँ बढ़ाने के लिए जिम्मेदार क्यों हो जाता है। और फिर यदि कोई नियम या तहरीर समयनुसार प्रासंगिक नहीं है तो उसे बदलने में इतनी जद्दोजहद क्यों होती है ? अभी हाल ही में एक समाचार पढ़ा कि 12 से 16 सप्ताह तक का ही गर्भ गिराने की कानूनी स्वीकृति है । इस के बाद कोई भी चिकित्सक वैध रूप से इसे अंजाम नही दे सकता ।
चिकित्सकीय कारणों से मानें तो इसे वाजिब ठहराया जा सकता है । क्योंकि उस समय तक माँ की जान को खतरे का प्रतिशत 10 % से नीचे का होता है । जबकि गर्भ के बढने पर यही प्रतिशत बढ़ कर 40 % से 50 % तक पहुंच जाता है । परंतु इसे बलात्कार की दशा में दूसरे सन्दर्भ में लिया जाना आवश्यक है । सबसे पहले यदि दुर्घटनावश किसी छोटी बच्ची के साथ बलात्कार हुआ हो तो उसे दो या तीन माह तो समझ ही नही आता कि उसके साथ क्या हुआ है या उसे कुछ हुआ अप्रत्याशित हुआ है । जब तक उसे परिस्थिति का भान होता है तब तक गर्भपात के समय निकल जाता है। अब उसके सामने उस अनचाहे गर्भ को ढोने की चुनौती का सामना करना पड़ता है । इसे कानूनी प्रक्रिया में उलझाना उचित नही है , क्योंकि ऐसे हम एक अवैध संतान को भी जन्म दे रहें है साथ ही उस पीडित को लंबे समय तक उस त्रासदी में फंसे रहने को भी बाध्य कर रहे हैं । एक समय के बाद परिवार के प्यार और सहयोग से पीड़ित बलात्कार भूल सकती है पर उस के परिणाम के साथ लंबे समय का दर्द नही भुलाया जा सकता है । यही कारण है कि इस मामले में कानून से ज्यादा सामाजिक पहलु को प्राथमिकता देनी चहिये। अगर ऑपरेशन के जरिये भी उस अवांछनीय संतान से मुक्ति मिल सके तो एक लम्बे समय की पीड़ा की त्रासदी भुलाई जा सकती है।
जीवन में निरंतर जिंदगी जीते रहने से भी ज्यादा जरूरी है उसे सुकून से जीना। जो कि बलात्कार के बाद मुश्किल से ही संभव हो पाता है। ऐसे में उसके साथ कानूनी प्रक्रिया के दावं पेंच लगाना उसके घावों पर नमक छिड़कने जैसा हो जाता है।
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