त्रासदी..................! 
********************

अब सिर्फ हीनता ही शेष है ,
और बस रह गया है क्रंदन। 
सब कुछ विस्मित सा है ,
घुटन भरा हुआ है रुदन। (1 )
         खो गया है आत्मभाव वो ,
         जिसकी आत्मा थी स्पंदन। 
         मायाजाल में फंस के कर रहे ,
         निरंतर संवेदनाओं का हनन।  (2)  
अकेलेपन की त्रासदी  भी ,
अब लगती है सुखद बंधन। 
व्यक्तिगतता के स्वार्थ की ,
गोपनीयता फैली है सघन। (3) 
        स्वछंदता हावी है सब पर ,
        अनाधीनता का है चलन। 
        किस ओर चल पड़ा समाज,
        क्यों रहती है रिश्तों से अनबन,(4 )
अवसरवादिता का प्रभाव ने अब  ,
आसक्ति को बनाया एक स्वपन। 
हर एक आत्मा की आवश्यकता है ,
आज संपूर्ण जनमन शोधन। (5 )
  









Comments