त्रासदी..................!
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अब सिर्फ हीनता ही शेष है ,
और बस रह गया है क्रंदन।
सब कुछ विस्मित सा है ,
घुटन भरा हुआ है रुदन। (1 )
खो गया है आत्मभाव वो ,
जिसकी आत्मा थी स्पंदन।
मायाजाल में फंस के कर रहे ,
निरंतर संवेदनाओं का हनन। (2)
अकेलेपन की त्रासदी भी ,
अब लगती है सुखद बंधन।
व्यक्तिगतता के स्वार्थ की ,
गोपनीयता फैली है सघन। (3)
स्वछंदता हावी है सब पर ,
अनाधीनता का है चलन।
किस ओर चल पड़ा समाज,
क्यों रहती है रिश्तों से अनबन,(4 )
अवसरवादिता का प्रभाव ने अब ,
आसक्ति को बनाया एक स्वपन।
हर एक आत्मा की आवश्यकता है ,
आज संपूर्ण जनमन शोधन। (5 )
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अब सिर्फ हीनता ही शेष है ,
और बस रह गया है क्रंदन।
सब कुछ विस्मित सा है ,
घुटन भरा हुआ है रुदन। (1 )
खो गया है आत्मभाव वो ,
जिसकी आत्मा थी स्पंदन।
मायाजाल में फंस के कर रहे ,
निरंतर संवेदनाओं का हनन। (2)
अकेलेपन की त्रासदी भी ,
अब लगती है सुखद बंधन।
व्यक्तिगतता के स्वार्थ की ,
गोपनीयता फैली है सघन। (3)
स्वछंदता हावी है सब पर ,
अनाधीनता का है चलन।
किस ओर चल पड़ा समाज,
क्यों रहती है रिश्तों से अनबन,(4 )
अवसरवादिता का प्रभाव ने अब ,
आसक्ति को बनाया एक स्वपन।
हर एक आत्मा की आवश्यकता है ,
आज संपूर्ण जनमन शोधन। (5 )
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