शर्मिंदगी और व्यथा की मार, भारतवासी होने की हार !
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ना जानें क्यों जिंदगी का एक लंबा अरसा गुजरने के बाद अब भारतीय होने पर शर्म , ग्लानि और गुस्सा आने लगा है । अब ये लगने लगा है कि हिंदुस्तान में सत्य , पारदर्शिता , ईमानदारी , निष्ठा ,उत्साह , योग्यता ,कर्मठता , सब बेमानी और फिजूल है । ऐसे देश में रहकर कौन सी उन्नति हांसिल करेंगे जहाँ लोगों को सही गलत , अच्छे बुरे , उचित अनुचित का कोई भान नही । एक भेड़ चाल सी है । बस बहे जा रहें हैं । भविष्य कैसा होना है कुछ पता नही ।
# जिस देश में वोट के लिए लोगों के बीच जातिगत रेखाएं खींच दी गई हों । # जिस देश में राजनीति निरंतर सबकी निजी जिंदगी में सेंध लगा कर उसे खोखला बना रही हो । # जिस देश में वही होता है जैसा राजनीतिज्ञ और नेता सोचते हैं । # जिस देश में अपनी सुविधा के अनुसार घटना की गंभीरता तौली जाती हो । # जिस देश में कथनी और करनी में स्पष्ट अंतर दिखते हुए भी असहाय से देखते रहने के अलावा कोई चारा नहीं है । # जिस देश में काबिलयत को पैसों और जाति के आधार पर आँका जाता हो । # जिस देश में अंध भक्ति के लिये बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दों को भी हास्यास्पद बना दिया जाता है । # जिस देश में लोगों की सोच को थोड़े से रुपये फेंक कर बदला और खरीदा जा सकता है । # जिस देश में औरत की स्वछंदता को उसकी उदण्डता समझा जाता है । जिस देश में ढोंग ,स्वांग और धर्मान्धता के आधार पर एक बड़ा साम्राज्य स्थापित किया जा सकता है । # जिस देश में चंद लोगों की चापलुसियत का बोझ पूरा देश उठाता है । # जिस देश में पद का लालच गंभीर मुद्दों की अनदेखी कर के उसे सिर्फ़ बहस का मुद्दा भर बने रहने में भला समझता है । # जिस देश में सत्य को साबित करना एक अपाहिज के पहाड़ चढ़ने जैसा मुश्किल होता है । # जिस देश में एक आम आदमी की जिंदगी जीते हुए अपना परिवार पालना एक असंभव सा इम्तेहान प्रतीत होता है । # जिस देश में समानता का अधिकार सिर्फ एक जुबानी जुमला से लगता है । # जिस देश में उसकी संसद में मेज़ें समूह में सिर्फ उन दिनों थपथपाई जाती है जब खुद के भत्तों की बढ़ोत्तरी की बात चले । वर्ना तो देशव्यापी समस्याओं में तो अमूमन स्थगित ही रहती हो । # जिस देश में एक छुटभैया नेता भी अपनी आने वाली पाँच पीढ़ियों के इंतेजाम छोड़ कर जाता है ,जबकि एक आम आदमी अपनी खुद की संतानों के जीवनयापन की जोड़ तोड़ में मर खप जाता है ।
कहते है कि हम अपने बड़ों से ही धीरे धीरे सब कुछ सीखते हैं । आज जो भी लोग जिन्हें हमने खुद से ऊपर एक मुकाम पर बैठाया है । उन्होंने ही इतने घटिया आदर्श प्रस्तुत कर रखें हैं कि निसंदेह आने वाली तमाम पीढियां भ्रष्ट ही पैदा होंगी । क्योंकि बेहतर जिंदगी की चाह उन्हें उसी राह पर चलने को मजबूर कर देगी जो उन्होंने दूसरों को करते और जीते देखा । अब यही सोच कर अफसोस हो रहा है कि काश ऐसे देश में जन्म न लिया होता । काश कभी तो ये सब बदलेगा और कुछ अच्छा सा सामने आएगा । काश कभी तो अपने भारतवासी होने पर क्षण भर को गर्व महसूस होगा ......काश ?
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ना जानें क्यों जिंदगी का एक लंबा अरसा गुजरने के बाद अब भारतीय होने पर शर्म , ग्लानि और गुस्सा आने लगा है । अब ये लगने लगा है कि हिंदुस्तान में सत्य , पारदर्शिता , ईमानदारी , निष्ठा ,उत्साह , योग्यता ,कर्मठता , सब बेमानी और फिजूल है । ऐसे देश में रहकर कौन सी उन्नति हांसिल करेंगे जहाँ लोगों को सही गलत , अच्छे बुरे , उचित अनुचित का कोई भान नही । एक भेड़ चाल सी है । बस बहे जा रहें हैं । भविष्य कैसा होना है कुछ पता नही ।
# जिस देश में वोट के लिए लोगों के बीच जातिगत रेखाएं खींच दी गई हों । # जिस देश में राजनीति निरंतर सबकी निजी जिंदगी में सेंध लगा कर उसे खोखला बना रही हो । # जिस देश में वही होता है जैसा राजनीतिज्ञ और नेता सोचते हैं । # जिस देश में अपनी सुविधा के अनुसार घटना की गंभीरता तौली जाती हो । # जिस देश में कथनी और करनी में स्पष्ट अंतर दिखते हुए भी असहाय से देखते रहने के अलावा कोई चारा नहीं है । # जिस देश में काबिलयत को पैसों और जाति के आधार पर आँका जाता हो । # जिस देश में अंध भक्ति के लिये बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दों को भी हास्यास्पद बना दिया जाता है । # जिस देश में लोगों की सोच को थोड़े से रुपये फेंक कर बदला और खरीदा जा सकता है । # जिस देश में औरत की स्वछंदता को उसकी उदण्डता समझा जाता है । जिस देश में ढोंग ,स्वांग और धर्मान्धता के आधार पर एक बड़ा साम्राज्य स्थापित किया जा सकता है । # जिस देश में चंद लोगों की चापलुसियत का बोझ पूरा देश उठाता है । # जिस देश में पद का लालच गंभीर मुद्दों की अनदेखी कर के उसे सिर्फ़ बहस का मुद्दा भर बने रहने में भला समझता है । # जिस देश में सत्य को साबित करना एक अपाहिज के पहाड़ चढ़ने जैसा मुश्किल होता है । # जिस देश में एक आम आदमी की जिंदगी जीते हुए अपना परिवार पालना एक असंभव सा इम्तेहान प्रतीत होता है । # जिस देश में समानता का अधिकार सिर्फ एक जुबानी जुमला से लगता है । # जिस देश में उसकी संसद में मेज़ें समूह में सिर्फ उन दिनों थपथपाई जाती है जब खुद के भत्तों की बढ़ोत्तरी की बात चले । वर्ना तो देशव्यापी समस्याओं में तो अमूमन स्थगित ही रहती हो । # जिस देश में एक छुटभैया नेता भी अपनी आने वाली पाँच पीढ़ियों के इंतेजाम छोड़ कर जाता है ,जबकि एक आम आदमी अपनी खुद की संतानों के जीवनयापन की जोड़ तोड़ में मर खप जाता है ।
कहते है कि हम अपने बड़ों से ही धीरे धीरे सब कुछ सीखते हैं । आज जो भी लोग जिन्हें हमने खुद से ऊपर एक मुकाम पर बैठाया है । उन्होंने ही इतने घटिया आदर्श प्रस्तुत कर रखें हैं कि निसंदेह आने वाली तमाम पीढियां भ्रष्ट ही पैदा होंगी । क्योंकि बेहतर जिंदगी की चाह उन्हें उसी राह पर चलने को मजबूर कर देगी जो उन्होंने दूसरों को करते और जीते देखा । अब यही सोच कर अफसोस हो रहा है कि काश ऐसे देश में जन्म न लिया होता । काश कभी तो ये सब बदलेगा और कुछ अच्छा सा सामने आएगा । काश कभी तो अपने भारतवासी होने पर क्षण भर को गर्व महसूस होगा ......काश ?
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