काबिलियत की परख......!
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मत कह तू काबिल है..
कब दर्द किसी का जाना है ?
कब समझी है पीड़ा मन की ,
कभी खुद को मरहम माना है ?

         मत कह तू काबिल है.....
         कब बन कर सोना दमका है ?
         कभी अँधियारा दूर हटाने को ,
         क्या सूरज बन कर चमका है ?

मत कह तू काबिल है ...
कब अहसास को जीवन माना है ?
जब पढ़ना हो अल्फ़ाज़ों को ,
तब लफ़्ज़ों का अर्थ जाना हो ।
       
           मत कह तू काबिल है .....
          कब गलतियों से हो पाया जुदा ,
          सभी में खूबियां तलाशता रहा
          और समझता रहा खुद को खुदा ।

मत कह तू काबिल है ...
सिर्फ गर्व किया आत्म शक्ति पर,
क्या कभी बना पाया सामंजस्य
स्वयं में हौसले और सहनशक्ति का ।
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