बारिश का उन्माद ..............! 
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अब कभी बारिश देखो तो ,
क्यों मन नहीं मचलता। 
भीगने के वास्ते बाहर जाने को  ,
घर से क्यों नहीं निकलता। 
             क्यों उस छप छप से अब ,
             होने लगी है विमुखता ।
             कहाँ खो सी गयी है वो ,
            मासूम सी स्वच्न्द्ता। 
अब बूंदों कि नमी में क्यों ,
नहीं मिलती वही विशुद्धता। 
अब क्यों करने लगें हम ,
खिलंदडपन से प्रतिद्वंदिता। 
         क्यों बचपन में समझ जाते थे ,
        टिप टिप बूंदों की निशब्दता। 
        आज वही सुहानापन बोझ लगे ,
        और बोझिल सी ये दुर्लभता। 
अब यही बारिश खीज दिला ,लगती है ,
कामकाज में आयी एक बाध्यता। 
जीवन कि भागादौड़ी में खो दी ,
हमने भोलेपन कि वो प्रफुल्लता। 




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